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चैवर्णिकाचार |
वस्त्रभूषणशय्याश्च भोग्यभोजनपात्रकम् । क्षालयेच्छुचिभिस्तोयै रजकेन यथाविधि ॥ १०२ ॥ जन्मादिपञ्चमे षष्ठे निशीथे बलिमाहरेत् । अर्चयेदष्टदिक्पालान्गीतवाद्य सशस्त्रकैः ॥ १०३ ॥ कृत्वा जागरणं, रात्रौ दीपेश्व शान्तिपाठकैः । द्वारे द्वितीयभागे तु सिन्दूरैश्वापि कज्जलैः ।। १०४ ॥
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प्रसूतिगृहमें चार अंगुल प्रमाण मिट्टी डालकर मिट्टी और गोबर से लीपे । पांच कल्कयुक्त उष्ण जलसे उस बच्चे और प्रसूताको स्नान करावे । यह स्नान पवित्रताके लिए तीन तीन दिन बाद प्रसवसे दशवें दिन तक करावे । प्रसूता के कपड़े, आभूषण, पलंग, भोजन करने के बर्तन आदिको विधिपूर्वक पवित्र जल तथा मिट्टीसे धोवे और मांजे । घोबीसे धुलवाने योग्य वस्तुओंको धोबीसे धुलावे । जन्मके पांचवें अथवा छठे दिन दशदिक्पालोंकी पूजा कर बलि दे । रात्रिमें दीपक लगाकर शान्तिपाठों द्वारा जागरण करे । दरबाजेके दूसरी ओर सिन्दूर तथा कज्जलकी टिपकी वगैरह लगावे || १०० - १०४ ॥
जननाशौच (जन्मके सूतक ) की मर्यादा ।
प्रसूतेर्दशमे चान्हि द्वादशे वा चतुर्दशे ।
मृतकाशौचशुद्धिः स्याद्विमादीनां यथाक्रमम् ॥ १०५ ॥
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प्रसूतिके दशवें दिन ब्राह्मणों, बारहवें दिन क्षत्रियों और चौदहवें दिन वैश्योंकी जननाशौचजन्मके सुतककी शुद्धि होती है । भावार्थ पुत्र-पुत्रीका जन्म होने पर दश दिनतक ब्राह्मणोंके, बारह दिनतक क्षत्रियोंके और चौदह दिनतक वैश्योंके सूतक रहता है ॥ १०५ ॥
प्रसूतिगृहे मासैकं दायादानां गृहेषु च ।
दशदिनावधिं यावन्न गच्छेदभुक्तये यतिः ॥ १०६ ॥
प्रसूतिके घरपर एक महीनेतक और उसके दायादों भाई-बांधवोंके घरपर दश दिन तक मुनि आहारके लिए न जावें । ॥ १०६ ॥
पञ्च दिनानि चेटीनां सूतकं परिकीर्तितम् । स्वामिगृहे प्रसूताद्धोटकीनां तथैव च ॥ १०७ ॥ उष्टी गौर्महिषी छागी प्रसूता चेद्गृहे यदा । दिनमेकं परित्याज्यं बहिन हि दोषभाक् ।। १०८ ॥
यदि कोई दासी अपने स्वामीके घरपर प्रसूत हुई हो तो उस घरमें पांच दिनतक सूतक रहता है । इसी तरह घोड़ीका भी पांच दिनतक सूतक रहता है । उँटनी, गाय, भैंस और बकरीका एक एक दिनका सूतक रहता है । यदि ये सब स्वामीके घरसे बाहर प्रसूत हुई हों तो कुछ भी सूतक नहीं है ॥ १०७ - १०८ ॥