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तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य लक्ष्मी का परम कृपापात्र यक्ष है, जो सम्राट् मेघवाहन की परीक्षा लेता है। यही समरकेतु, तारक व मलयसुन्दरी को समुद्र में डूबने से बचाता है। इसी प्रकार अन्य पात्र भी अपनी-अपनी भूमिका के अनुसार कार्य करने में संलग्न रहते है। स्त्री-पात्र तिलकमञ्जरी तिलकमञ्जरी इस कथा की नायिका है। यह विद्याधर चक्रवर्ती सम्राट चक्रसेन की पुत्री है। पूर्वजन्म में यह ज्वलनप्रभ नामक वैमानिक की पत्नी थी और देवी लक्ष्मी की सखी थी। इसका नाम प्रियङ्गसुन्दरी था। यह एक अद्वितीय व अनिन्द्य सुन्दरी है। इस जन्म में यह विद्याधर कन्या है। इसलिए भी इसका व्यक्तित्व अत्यधिक आकर्षक है।
तिलकमञ्जरी पाणिग्रहण से पूर्व मुग्धा” परकीया नायिका है। मुग्धा परकीया वह नायिका होती है, जिसमें यौवन अवतरित हो चुका है। जिसमें लज्जा की अधिकता व काम की अल्पता हो तथा जो कन्या” पितादि के वश में रहती हो। तिलकमञ्जरी अपने पिता को नियंत्रण में रहती है। हरिवाहन को देखकर काम-विकार से पीड़ित होने पर भी अत्यधिक लज्जा के कारण अपना प्रेम प्रकट नहीं करती। यह पाणिग्रहण के पश्चात् मध्या स्वकीया नायिका है। जिस नायिका में यौवन और काम का उदय हो रहा हो, जो मोह पर्यन्त रति करने में समर्थ हो तथा जो विनय सरलता आदि गुणों से युक्त गृहकार्य में दक्ष पतिव्रता स्त्री हो वह 'मध्या स्वकीया' नायिका कहलाती है।" सौन्दर्य की प्रतिमा : तिलकमञ्जरी अद्वितीय सुन्दरी है। विद्याधर कन्या होने के कारण यह अपार सौन्दर्य की स्वामिनी है। जिसके चित्रदर्शन मात्र से ही हरिवाहन
87. (क) मुग्धा नवयवः कामा रतौ वामा मृदुः क्रुधि । द. रू., 2/16
(ख) प्रथमावतीर्णयौवनमदविकारा रतौ वामा।
कथिता मृदुश्च माने समधिकलज्जावती मुग्धा । सा. द., 3/58 88. परकीया द्विधा प्रोक्ता परोढा कन्यका तथा । वही, 3/66 89. कन्या त्वजातोपमा सलज्जा नवयौवना । वही, 3/67 90. मध्योद्यद्यौवनानङ्गा मोहान्तसुरतक्षमा – द. रू., 2/16 91. विनयार्जवादियुक्ता गृहकर्मपरा पतिव्रता स्वीया। वही 3/57