________________ 94] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान अथ प्रत्येकार्घ - दोहा शब्दवान वर कूट है, विजय सु पश्चिम वीर। ता पर श्री जिनभवन लख, अर्घ जजों कर जोर॥२०।। ॐ ह्रीं विजयमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी शब्दवान नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ॥ विजयवान वक्षार है, विजय सु पश्चिम द्वार। अर्घ देत भवि भाव धर, श्री जिनभवन निहार॥२१॥ ॐ ह्रीं विजयमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी विजयवान नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ॥ विजयमेरु पश्चिम दिशा, आसीविष वक्षार / ता पर जिन मंदिर बनो, अर्घ देत उर धार // 22 // ___ॐ ह्रीं विजयमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी आसीविष नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ॥ पश्चिम विजय सु मेरुके, नाम सुखावह सार। मन वच तन जिन भवन नाम, अर्घ देय भर थार॥२३॥ ___ॐ ह्रीं विजयमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी सुखावह नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ॥ चन्द्र नाम वक्षार है, पश्चिम विजय सु नाम। श्री जिनमंदिर है तहां, अर्घ जजों तज काज॥२४॥ ॐ ह्रीं विजयमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी चन्द्र नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥५॥ अर्घ॥ विजय सु पश्चिम वोर लख, सूर्य नाम वक्षार। अर्घ जजों वसु द्रव्य ले, जिनमंदिर सुखकार // 25 // ___ॐ ह्रीं विजयमेरुके पश्चिम विदेह लम्बन्धी सूर्य नाम वक्षार गिरिपर सिद्भकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ अर्घ //