Book Title: Tattvarthadhigama Sutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Vijaydarshansuri, Yashovijay
Publisher: Motiji Kapurchand Tarachand

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Page 12
________________ भुण्डपाद' जमना वाचनाप्रमुरु हता; 'न्यग्रोधिका जेमनी जन्मभूमि हती, कौभापणि गोत्रीय 'स्वाति' नामना जेमना पिता हता, पारसीगोत्री 'उमा'नामना जेमनी माता हता, अने उच्च नागर जमनी शाखा हती, ते श्री उमास्वातिवाचक सम्यग्गुरुपरंपराथी प्रास थयेल जिनपाणीने सारी रीते अवधारीने आ स्पष्टतावालं " तत्वार्थाधिगम " नामर्नु शास्त्र ऐहिक सुखोपदेशना तुच्छ शास्त्रोवडे हणायेल बुद्धिवाळा अने दुःखित लोकने जोईने प्राणीओनी अनुकंपाथी प्रेराईने, विहार करता करतां 'कुसुमपुर-पाटलीपुत्र' नामना नगरमां पधारी रथु. जे आ तत्वार्थाधिगम शास्त्रने जाणीने ते मुजब आचरण करशे, ते अन्यायाध परमार्थ सुखरूप मोक्षने अल्प समयमा प्राप्त करशे." ओश्रीना जन्मसमय अंगनी मान्यताओमा विवाद होवाथी ते अंगे निश्चित रीते कहवानुं आजे शक्य नथी. न्यग्रोधपुर नगरमां तेओ जन्न्या. जगनुं नाम तो जाण बहार छे, परंतु माता उमा अने पिता स्वातिनी स्मृति अविचळ जळवाई रहे ते माटे मातापितानी विज्ञप्तिथी दीक्षित अवस्थामा तेओश्रीतुं नाम 'उमा(वाति' पाडवामां आवेलु, ए हकीकत विदित छे. दिगम्बरो उमास्वाति तथा उमारवामि, ए पन्ने नामथी तेमने ओळखे छे. कई वयं तेमणे जेना दीक्षा अंगीकार करी तेनो उल्लेख मळतो नथी. उच्च नागर शाखामा तेओ दीक्षित थया. वाचकपदवीना तेओ धारक बन्या. विहार करता करतां कुसुमपुरमा वर्तमान पाटलीपुत्रमा तत्वार्थाधिगम सूत्रनी रचना तेओश्रीए पूर्ण करी. आ उल्लेख भाष्यमा होवाथी तत्वार्थभाष्य पण कुसुमपुर नगरमा रच्युं होय तेम संभवे छे. आ हकीकत, एमनी विहारभूमि उत्तर दिन्दुसानमा हती एम दशावे छे. तेओश्री श्वेतांवर मतानुयायी हता, परंतु दिगम्बरो तमने दिगम्बर मतानुयायी तरीके माने छे. दिगनर मान्यता आधार रहित जणाय छे. . "पाचकाःपूर्वविदः" एम.पन्नवणास्त्रनी टीकामा जणावायुं छे. ए वचनने आधारे तेओश्री. पाचक होवाथी पूर्वधर हता, एम मानकाने कारण मळे छे. तेमणे रचेल ग्रन्थोमा रहेली विद्वत्ता तेओश्री विशिष्ट ज्ञानी होवानी मान्यताने पुष्टि आपे छे. पांचसो ग्रन्थोना रचयिता तरीके तेओश्री प्रसिद्ध छे, परंतु एमांथी आंगळीना वेढे गणी शकाय ५८ला ग्रन्थो आपणी पासे रखा छे.. ____ एमना दीक्षागुरु अगियार अंगना धारक 'धोपनंदि' हता, अने एमना दीक्षाप्रशुरु 'शिवश्री' वाचकमुख्य हता. बनवाजोग छे के एमना दीक्षागुरु घोपनन्दि पूर्वघर नहि होय एटले पाचक तरीके तेमनी ओळखाण नथी अपाई. एटले ज काच- पूर्वनुं ज्ञान तेओश्रीए 'मूळ' नामना वाचकाचार्य पासथी लीधुं होय, अने विधागुरु तरीके तेमनी स्थापना करी होय. घोपनन्दि पूर्वधर नहि होवा छता वाचक हता एवी समजने लईने पंडित सुखलालजी तत्वार्थसूत्रनी एमनी गुजराती व्याख्याना परिचयमा 'वाचक शब्द वंशसूचक छ एम जणावे छे, एमा भूल थती होय ए वनवाजोग छः . तत्वार्थटीकाप्रशितिमा "घोष नन्दिक्षमाश्रमणस्यकादशाविदः" ए पंकि,

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