Book Title: Tattvarthadhigam Sutra
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 6
________________ किंचिद्-वक्तव्य यह तत्त्वार्थसूत्र जैन दर्शन में संस्कृतभाषा में सूत्रात्मक रचा हुआ आद्य ग्रन्थ है । इस में जैनधर्म के संपूर्ण सिद्धान्त बड़े लाघव से संग्रह किये गये है। इस सूत्र पर खुद का भाष्य और आ० श्री हरिभद्रसूरिजी, श्री सिद्धसेन गणि आदि आचार्यों ने रची हुई अनेक टीकाएँ है। इस सूत्र के अध्याय २, सूत्र ३० का पाठ बहुत से मुद्रित पुस्तकों में 'एकसमयोऽविग्रहः' इस प्रकार अवग्रह सहित ऋजुगतिका द्योतक तरीके छपा है । वह टीका के साथ संगत नहीं हैं । टीका में विग्रह कब होता है ? इस प्रश्न का उत्तर रूप में उक्त सूत्र बताया है और उसका अर्थ-'एक समय का व्यवधान-अन्तर से अर्थात् एक समय बाद विग्रह होता है इस प्रकार बताया है । इससे उक्त सूत्र ऋजुगति को बताने वाला नहीं, किंतु विग्रहगति को बताने वाला है । यह बात पाठकों को ध्यान में रहे। इस सूत्र के प्रणेता श्वेताम्बराचार्य वाचक श्री मास्वातिजी है । वे ग्यारह अंग के ज्ञाता व श्री धर्मघोषनंदि के शिष्य और वाचक शिवश्री के प्रशिष्य थे और वे अत्यन्त माननीय है। इनके और जन्मस्थलादि वृत्तान्त और ग्रन्थों से जानना । यह ग्रंथ जैनधर्म के तत्त्व समझने के लिए अत्युपयोगी है । इस चीज को लक्ष्य में रखकर आगम सम्राट् बहुश्रुत ध्यानस्थस्वर्गत आचार्यश्री आनन्द सागरसूरीश्वरजी म. के सदुपदेश से वि० सं० १९८३ के चतुर्मास में वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य श्री माणिक्यसागरसूरीश्वर

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