Book Title: Tattvartha Sutra Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 853
________________ दीपिका-नियुक्ति टीका अ. सू. यावत्कथिकानशनतक्सो वैविध्यम् १९५ द्विशिष्टं मरणम् इङ्गितमरण मुच्यते, अस्य नाम-इङ्गिनी' मरणमित्यप्युच्यते । अन्यद् द्वयन्तु-पादपोपगमनं भक्तमत्याख्यानश्च पूर्वोक्त समानमेवाऽवगन्तव्यम्, आगमेतु-यावत्कथिक नाम तपो द्विविधमेव दृश्यते । उक्तञ्चौपपातिके सूत्रे ३० सूत्रे-से किं तं जावकहिए ? जावकाहिए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-पाओवगमणेय-भत्तपच्चक्खाणेय' इति । अथ किं तत्-यावत्कथितं यावत्कर्थिक द्विविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा-पादपोपगमनम् भक्तप्रत्याख्यानञ्च, इति ॥७॥ • x मूलम्-पाओवगमणे दुविहे वाघाइमे-णिवाघाइमे या नियमा अप्पडिकम्मे ॥८॥ छाया-पादोपगमन द्विविधम् व्याधातिम-नियाघातिमं च नियमतोऽप्रतिकर्म ॥८॥ है क्योंकि कहीं-कहीं यावत्कणिक तकलन कार का भी कहा गया है। शास्त्र में प्रतिपादिन एक विशिष्ट प्रकार की क्रिया को 'इगित' कहते हैं, उससे युक्त मरण गित्तभरणा कहलाता है। शेष दो पादपोपगमन और भक्तप्रत्याख्यान पहले ही बतलाए जा चुके हैं। आगम में यावस्कथिक नामक तप दो ही प्रकार का देखा जाता है । औपपातिक सूत्र में कहा भी है-- 'यावत्कथिक अनशन के कितने भेद हैं ? 'यावत्कथिक के दो भेद है-पादपोपगमन और भक्तवत्याख्यान ७ 'पाओवगमणे दुविहे वाघाह मे इत्यादि सू० ८ - सूत्रार्थ-पादपोपगमन व दो प्रकार का है-वाघातिम- और निर्धांघातिम। दोनों प्रकार का यह तप निधन से प्रतिकर्मरहितसेवाशुश्रषा वर्जित होता है ॥८॥ કે કઈ-કઈ સ્થળે યાવત્રુથિક તપ ત્રણ પ્રકારના પણ કહેવામાં આવ્યા છે. શાસ્ત્રમાં પ્રતિપાદિત એક વિશિષ્ટ પ્રકારની ક્રિયાને “ઈંગિત કહે છે, તેનાથી યુકત મરણ ઈગિતમરણ કહેવાય છે. શેષ બે પાદપપગમન અને ભકતપ્રત્યા ખ્યાન પહેલા જ બતાવવામાં આવી ગયા છે. આગસમાં યાવસ્કથિક નામક તપ બે પ્રકારના જોવામાં આવે છે. પાકિસૂત્રમાં કહ્યું પણ છે યાવસ્કથિક અનશના કેટલા ભેદ છે ? 'यावपिनो से छे-पापागमन मने मतप्रत्याभ्यान ॥७॥ 'पाओवगमणे दुविहे त्यादि। સબાથ–પાદપિયગમન તપ બે પ્રકારના છે-વ્યાઘાતિમ અને નિર્યાધ્રાતિમ બંને પ્રકારના આ તપ નિયમથી પ્રતિકર્મ રહિત સેવાશુશ્રષાવજિત જ डाय छे ॥ ८ ॥

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