Book Title: Tattvagyan Pathmala 2
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 41
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates प्रवचनकार जो क्रिया का जनक हो, क्रियानिष्पत्ति में प्रयोजक हो, उसको कारक कहते हैं। ' करोति क्रियां निर्वर्तयतीति कारक: ' ऐसी उसकी व्युत्पत्ति हैं । तात्पर्य यह हैं कि जो किसी न किसी रूप में क्रिया - व्यापार के प्रति प्रयोजक होता है, कारक वही हो सकता हैं, अन्य नहीं । - कारक छह हैं (१) कर्ता (२) कर्म (३) करण ( ४ ) संप्रदान (५) अपादान और (६) अधिकरण । जो स्वतंत्रतया (स्वाधीनता से ) करता हैं वह कर्ता हैं; कर्ता जिसे प्राप्त करता हैं वह कर्म हैं; साधकतम अर्थात् उत्कृष्ट साधन को करण कहते हैं; कर्म जिसे दिया जाता हैं अथवा जिसके लिए किया जाता हैं वह सम्प्रदान हैं; जिसमें से कर्म किया जाता है वह ध्रुववस्तु अपादान हैं; और जिसमें प्रर्थात् जिसके आधार से कर्म किया जाता हैं वह अधिकरण हैं । ये छह कारक व्यवहार और निश्चय के भेद से दो प्रकार के हैं । जहाँ पर के निमित्त से कार्य की सिद्धि कहलाती हैं वहाँ व्यवहार कारक हैं; और जहाँ अपने ही उपादान कारण से कार्य की सिद्धि कही जाती हैं, वहाँ निश्चय कारक हैं। व्यवहार कारकों को इस प्रकार घटित किया जाता हैं कुम्हार कर्ता हैं; घड़ा कर्म हैं; दंड, चक्र इत्यादि करण हैं, कुम्हार जल भरने वाले के लिए घड़ा बनाता हैं, इसलिये जल भरने वाला सम्प्रदान हैं; टोकरी में से मिट्टी लेकर घड़ा बनाता हैं, इसलिये टोकरी अपादान है; और पृथ्वी के आधार पर घड़ा बनाता हैं, इसलिए पृथ्वी अधिकरण हैं । यहाँ सभी कारक भिन्न-भिन्न हैं । - परमार्थतः कोई द्रव्य किसी का कर्ता - हर्ता नहीं हो सकता, इसलिये छहों व्यवहार कारक असत्यार्थ हैं। वे मात्र उपचरित प्रसद्भूत व्यवहार नय से कहे जाते हैं। निश्चय से किसी द्रव्य का अन्य द्रव्य के साथ कारकता का सम्बन्ध हैं ही नहीं। निश्चय कारकों को इस प्रकार घटित करते हैं - मिट्टी स्वतंत्रतया घड़ारूप कार्य को प्राप्त होती है, इसलिए मिट्टी कर्त्ता हैं और घड़ा कर्म हैं, अथवा ३९ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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