Book Title: Tattvagyan Mathi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 8
________________ १५६ १५७ १५८ १५९ १६० १६२ १६४ १९ लोक पुरुषसंस्थाने कह्यो। २० आज भने उछरग० होत आसवा परिसवा० मारग साचा मिल गया० २३ बीजा साधन बहु काँ० २४ विना नयन पावे नही० २५ हे प्रभु, हे प्रभु २६ यम नियम सजम० २७ जड भावे जड परिणमे० २८ जिनवर कहे छे ज्ञान तेने० २९ अपूर्व अवसर एवो० ३० मूळ मारग साभळो० ३१ पथ परमपद वोध्यो० ३२ धन्य रे दिवस० ३३ जड ने चैतन्य बन्ने० ३४ सद्गुरुना उपदेशथी. ३५ इच्छे जे जोगी जन० ३६ आत्मसिद्धि १६८ १७३ १७५ १७७ १७९ १८१ १८३

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