Book Title: Swapna Sara Samucchay
Author(s): Durgaprasad Jain
Publisher: Sutragam Prakashak Samiti

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Page 8
________________ ३ वाले भी भिन्न-भिन्न मस्तक के आदमी थे । इससे यह सिद्ध होता है कि लोग जैसा निश्चित करके फल कायम करते हैं, उनकी धारणा के अनुसार फल भी वैसा ही हो सकता है । लोंगों से उन का अनुमान सही उतरा माना जाता है । यदि इसका कर्मसे संबंध है तो इसे अधिक महत्व देने की आवश्यकता नहीं रहती । कुछ भी हो' फल ठीक उतरता है और नहीं भी । पुराणकालीन लोगों का मत है कि स्वप्न स्वस्थ श्रवस्था और प्रस्वस्थ अवस्था में आते हैं । धातुओं की समानता रहते हुए दिखने वाले स्वप्न स्वस्थ अवस्था के माने जाते हैं, और धातुम्रोंकी विषमता न्यूनाधिकता रहते हुए जो स्वप्न आते हैं वे अस्वस्थ अवस्थाके स्वप्न होते हैं । स्वस्थ अवस्था के स्वप्न सही और दूसरे प्रकार के निरर्थक ! स्वप्नों के और भी दो प्रकार हैं, एक दोष (वायु-पित्त-कफ) से होने वाले, प्रोर दूसरे दैव ( अनुष्ठान ) से आने वाले । दोषों के प्रकोप से आने वाले स्वप्न झूठे और दैव से आने वाले स्वप्न सच्चे होते हैं । इनके अतिरिक्त इस विषयके विशेषज्ञोंने और भी कई कारण बताए हैं जिन्हें आगे कहेंगे, परन्तु इन चार कारणों में सबका समावेश हो जाता है । इतना तो निश्चित अनुभव हो चुका है कि स्वप्न के आनेका मूल कारण मन ही है । उस समय मन पर कैसी गुजरती है, उसकी स्थिति कैसे बनती और बिगड़ती है इस जटिल विषय को समझने के लिए पहले कुछ मन का अध्ययन किया जाना उचित है, क्योंकि स्वप्न मनोमुख्य है, और उसका धर्म अर्थावग्रह है । ब्यंजनावग्रही-धर्म की इंद्रियोंके पास उनका विषय आकर टकराने से वे अपनी तन्मात्राका अनुभव करती हैं, परन्तु मनका धर्म अर्थावग्रह है । अर्थावग्रही मन अपने विषय की तन्मात्रासे जा

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