Book Title: Swapna Sara Samucchay
Author(s): Durgaprasad Jain
Publisher: Sutragam Prakashak Samiti

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Page 40
________________ २६-... तरंग और किलोलोंसे व्याप्त एक बड़े समुद्रको देखकर उसे पार करे..... मोक्ष ...। ३०-...-- रत्नजडित एक बडे भवनको देखकर उसमें प्रवेश करे- "मोक्ष ......। ____३१-... सब प्रकारके रत्नोंसे जड़े हुए एक बड़े चमकीले विमानको देखकर उसमें बैठे और प्रवास करे..... मोक्ष ......। इन शास्त्रीय और सौत्रिक अवतरणोंसे तो यह स्पष्ट समाधान मिलता है कि दर्शक यदि इस भाँतिके स्वप्न देखकर जग पड़े तो यथासमय उसी जन्ममें मोक्ष पा सकता है। भगवान् महावीर के १० स्वप्नोंका फल उन्हें भी मिला और जानपदीयोंको भी। इस से जान पड़ता है कि नाना प्रकारकी विभूतियोंमें से स्वप्न भी बड़े महत्त्वकी विभूति और अलौकिक वस्तु है, पर यदि ये स्वप्न शुभाशुभ कर्मकी प्रेरणामोंसे पाते हों और उनका फल भी तद्नुसार ही मिलता हो तो स्वप्न कुछ अधिक महात्म्य विधायक वस्तु नहीं ठहरता । कुछ भी हो इन बातोंको कोई पूरा और सयाना ही समझ सकता है अधूरे और बेसमझका यह विषय नहीं है। स्वप्न और जैनशास्त्र-जैन सूत्रोंमें कहा है कि जिस माताको १४ महास्वप्न स्पष्ट आते हैं, उसकी कुक्षिसे तीर्थंकरदेव उत्पन्न होते हैं। ये ही स्वप्न जिन्हें अस्पष्ट पाते हैं उनकी माताके पदरसे चक्रवर्ती होता है। वे स्वप्न ये हैं-हाथी, वृषभ, "सिंह, लक्ष्मीदेवता, पचरंगे फूलोंकी माला, चन्द्रमा, 'सूर्य, 'ध्वजा, कलश, 1 पद्मसरोवर, 11क्षीरसमुद्र, 1 देवविमान, 1"रत्नोंकी राशि, और धुएँसे रहित 1 *अग्निशिखा। तब श्रीजिनसेनाचार्य (दिगम्बरीय)महापुराणमें मरुदेवी को १६ स्वप्न आये बताते हैं । इन १४ स्वप्नोंसे अलग दो मछलियाँ, सिंहासन और नागेंद्र भवन तीन स्वप्न निराले लिखे हैं ।

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