Book Title: Swami Dayanand aur Jain Dharm
Author(s): Hansraj Shastri
Publisher: Hansraj Shastri

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Page 18
________________ जिसके पास " स्वामीजी " महाराजका प्रदान किया हुआ "भांड धूर्त और निशाचर रूप स्वर्णपदक-चांद-" न निकले। क्योंकि, ऐतरेयसे लेकर यावत् ब्राह्मण ग्रंथ, कात्यायन श्रौतसे लेकर यावत् श्रौत सूत्र ग्रंथ, एवं आश्वलायनगृह्यसे लेकरे यावत् गृह्य सूत्र ग्रंथ, मनुस्मृतिसे लेके यावत् स्मृति ग्रंथ, महाभारतसे लेकर यावत् इतिहास ग्रंथोमसे, ऐसा एक भी ग्रंथ नहीं, जिसमें मांसकी चर्चा न पाई जावे ! आज तक वेदोंके जितने प्राचीन भाष्य उपलब्ध होते हैं, उनमें हिंसाका उल्लेख स्पष्ट देखने में आता है । यजुर्वेदके भाष्यकर्ता महीधराचार्य पर मांस संबंधी उल्लेखका तथा अन्य बीभत्स व्यवहारोंके उल्लेखका दोष लगाना वृथा है; क्योंकि, महीधराचार्यके भाष्यका अक्षर अक्षर कात्यायन श्रौत सूत्रके आधार पर लिखा गया है! ब्राह्मणोंसे लेके पुराणेतिहास पर्यंत जितने भी ग्रंथ उपलब्ध होते हैं, उन सबमें वेदोंपर हिंसाका कलंक लगाया देखा जाता है ! इस लिये " स्वामीजी" की आज्ञानुसार हमे विवश होकर उनके रचयिता-महर्षि व्यास, वसिष्ट, याज्ञचल्क्य, जैमिनि, वाल्मीक, कात्यायन, महीदास, कुमारिलभट्ट, शंकराचार्य, सायण, माधव, रामानुजस्वामी, मध्वाचार्य, वाचस्पति मिश्र, उदयनाचार्य, नीलकंठ, श्रीधर, मधुसूदन स्वामी, आनंदगिरि प्रभृति सभको ही भांडधूत्त और निशाचर कहना पड़ेगा ! मगर क्षमा कीजिये हममें इतना साहस नहीं कि, उक्त महात्माओंका हम इन शब्दोंसे स्मरण कर सकें ! हां! " स्वामीजी " भले ही इसके लिये समर्थ हों!! . . " स्वामीजी " महाराज चार्वाक, मामाणक, बौद्ध और जैनोंपर शोक प्रकट करते हैं कि, " इन्होंने मूल चार वेदोंकी संहिताओंको न,सुना ! और न देखा! और न किसी

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