Book Title: Sutrakritangam
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Venichand Surchand

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Page 14
________________ Shri Ma p Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagara y inmandir सूत्रकृताङ्गं 18|| यद्वा-यत् यमिन् काले क्रियते यत्र वा काले करणं व्याख्यायते तत्कालकरणम् , एतदोषतः, नामतस्खेकादश करणानि॥१०॥ १ समयाशीलाङ्का- तानि चामूनि ध्ययने कचार्यायवृ रणनिक्षेप | बवं च बालवं चेव, कोलवं तेत्तिलं तहा । गरादि वणियं चेव, विट्ठी हवइ सत्तमा ॥११॥ सउणि चउत्तियुतं ||प्पयं नागं किंसुग्धं च करणं भवे एयं । एते चत्तारि धुवा अन्ने करणा चला सत्त ॥ १२॥ चाउद्दसिरत्तीए। सउणी पडिवजए सदा करणं । तत्तो अहक्कम खलु चउप्पयं णाग किंसुग्धं ॥१३॥ एतद्गाथात्रयं सुखोनेयमिति ॥ ११॥१२॥ १३ ॥ इदानीं भावकरणप्रतिपादनायाऽऽहभावे पओगवीसस पओगसा मूल उत्तरे चेव । उत्तर कमसुयजोवण वण्णादी भोअणादीसु ॥१४॥ भावकरणमपि द्विधा-प्रयोगविस्रसाभेदात् , तत्र जीवाश्रितं प्रायोगिक मूलकरणं पश्चानां शरीराणां पर्याप्तिः, तानि हि पर्याप्तिनामकर्मोदयादौदयिके भावे वर्तमानो जीवः स्ववीर्यजनितेन प्रयोगेण निष्पादयति । उत्तरकरणं तु गाथापश्चार्दुनाह-उत्तरकरणं क्रमश्रुतयौवनवर्णादिचतूरूपं, तत्र क्रमकरणं शरीरनिष्पत्त्युत्तरकालं बालयुवस्थविरादिक्रमेणोत्तरोत्तरोऽवस्थाविशेषः, श्रुतकरणं तु व्याकरणादिपरिज्ञानरूपोऽवस्थाविशेषोऽपरकलापरिज्ञानरूपश्चेति,यौवनकरणं कालकृतो वयोऽवस्थाविशेषो रसायनाद्यापादितो वेति, aeeeeeeeeeeeeeeeee १ थीविलोयणं प्र० । २ पक्खतिहिओ दुगुणिआ दुरूवहीणा य सुक्कपक्खंमि । सत्तहिए देवतियं तं चेव रूवाहियं रत्तिं ॥१॥ इति गाथानुसारेण करणयोजना ४४२८२-६ (विष्टि)+१-७(वणिक्)-१०-२-२०६+1= (व. वि.)। For Private And Personal

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