Book Title: Stotra Granth Samucchaya
Author(s): Trailokyamandanvijay
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 305
________________ प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः २९३ पुग्गलपरियट्टद्धं, जावुक्किट्ठो भवो जहण्णूणो । संधारणिज्जमेयं, हियए कहियस्स तप्पज्जं ॥२०॥ सम्मइंसणवडिया-स्सहयारिप्पबोहचरणेहिं । पडिया वराइ तेसिं, नाणचरित्ताइ णो होज्जा ॥२१॥ एएण कारणेणं, पावंति ण निव्वुई वयणमेयं । उइयं जिर्णिदवुत्तं, कहियं सम्मत्तमाहप्पं ॥२२॥ मुणिवेसाइचरित्तं, दव्वा तेहिं विणा भरहपमुहा । सब्भावसंजमड्डा, खिप्पं पावीअ परमपयं ॥२३॥ न तहा दंसणहीणा, संगमकविलाइया विणयरयणो । अंगारमद्दगो वि य, पालगजुयलं ति दिटुंता ॥२४॥ सेणियकण्हाईणं, सड्डत्तं भण्णए सुसम्मत्ता । सड्डाण दुण्णि भेया, अज्जा सम्मत्तगुणसड्ढा ॥२५।। देसविरइहरसड्डा, बिइया सिवहेउपयरपाहण्णं । सम्मत्तमिणं सिद्धं, भरहाइसरूवबीयमिणं ॥२६।। भरहस्स जम्मभूमी, पुरी विणीया पिया जुगाईसो । जणणीसुमंगलक्खा, चोरासीलक्खपुव्वाऊ ॥२७॥ पणसयधणुमाणंगं, कुमरत्ते सगसयरिलक्खपुव्वाइं । सहसवरिसमंडलिया, इत्थीरयणं सुभद्द त्ति ॥२८॥ सट्ठिवरिससहसाई, गयाइ छक्खंडसाहणे तस्स । सहसवरिसनूणाई, छलक्खपुव्वाइ चक्कित्ते ॥२९।। वज्जायंसगभुवणे, चक्की से पढमभावणाभावा । संजाओ सव्वण्णू, दीहाऊ पत्तमुणिवेसो ॥३०॥ इगलक्खपुव्वचरणं, पालित्ता देसणाइ तारित्ता । बहुभव्वणरे पत्तो, मुत्तिपयं निरवसाणसुहं ॥३१॥ सिरिठाणंगज्झयणे, नवमे सेणियचरित्तसंखेवो । उवएसप्पासाए, अभव्वकविलाइदिटुंता ॥३२॥ कण्हो सोलसवरिसे, कुमारभावे य मंडलियभावे । छप्पण्णवरिसकालो, बिसयरिनूणे सहसवरिसे ॥३३।। कण्हो करीअ रज्जं, पुव्वभवो तस्स सत्तमं सग्गं । महुराए सो जाओ, जणओ वसुदेवभूमिवई ॥३४॥ दहधणुमाणसरीरो, सहसवरिसपुण्णजीवणो णीलो । गोयमगुत्तीअ से, तह जणणी देवई तस्स ॥३५॥ महुराए नयरीए, गेहे कंसस्स कण्हजम्मो य । वुड्डी गउलगामे, बारवइए कयं रज्जं ॥३६।।

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