Book Title: Sthanang Sutram Sanuvadasya
Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SEARTNEURRENTERNMENSE आ गाथानो भावार्थ उपर कहेल छे. अथवा अर्थनी अपेक्षाए ( अनंत अर्थ होवाथी ) मूत्र लघु (थोड छ ) माटे अणु कहेवाय छे अने तीर्थकरोक्त त्रिपदीरूप अर्थ सांभळीने पछी गणधरो सूत्र रचे छ तेथी अनु ( एटले पाछळ छे ) ए बने विशेषण योग शब्दने आपेल छे. अनु शब्दना वाच्य जे सूत्र तेनो विषय साथे संबंध ते अणुयोग अथवा अनुयोग कहेबाय छे. आह चअहवा जमत्थओ, थोवपच्छभावेहि सुयमणुं तस्स । अभिधेये वावारो,जोगो तेणं व संबंधो ॥१०॥ आ ( भाष्यनी ) गाथानो भावार्थ उपर कहल छे तेना दरवाजाओनी जेम द्वारो-ज्यांधी जइ-आवी शकाय ते-एक स्थानक अध्ययनरूप नगरना अर्थ जाणवाना उपायरूप उपक्रमादि चार द्वारो जाणवा. दरवाजा बगरनुं नगर ते अनगर ज होय छे. जो एक दरवाजो होय तो दुःखे प्रवेश करी शकाय अने कार्यनी हानि माटे ते थवा पामे छे, परंतु चार दरवाजा होय तो गमे ते दरवाजो अनुकूळ थाय अने कार्यनी सिद्धि माटे थवा पामे छे. एवी रीते एक स्थानक अध्ययनरूप नगर पण अर्थाधिगमना उपायरूप द्वारोबडे रहित होय तो अर्थ- जाणवू अशक्य थाय छे. ६. तद्भदद्वार. एक द्वारवाळु शास्त्र पण दुःखे जाणी शकाय छे अने विशेष भेद सहित चार द्वारवालं होय तो अर्थ सुखे जाणी शकाय छे. ७. निरुक्तिद्वार. आ कारणथी द्वारनो उपन्यास फलवालो छे. ते उपक्रमादि द्वारोना क्रमशः बे, त्रण, वे अने बे भेद थाय छे. 'निरु For Private and Personal Use Only

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