Book Title: Sthanang Sutram Part 04 Author(s): Ghasilal Maharaj Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti View full book textPage 4
________________ हिन्दी-- अति निष्फलक सदा उदित, परिपूर्णचन्द्र समानसे, मुखिया सकल दुनियां हुई, पीयूप वाणी पानसे । हैं आज दुखिया दीखती वे विरहमें श्रीमानको, हे भव्यजन मन भावसे, मुनि मदनलाल महानको ।। ३ ॥ यदि कमपि मदीय, मन्तु मालोक्य विद्वन। त्यजसि सपदि हा-हा ? त्यज्यतां जीव कायाः । पडपि निरपराधा, रक्षणीया स्त्वया तं,मुमुनि मदनलालं शुद्धभालं भजध्वम् ।। ४ ।। हिन्दी-- मुनिवर ! हमारे कोइ भी अपराधसे हा रूठकर यदि त्याग हमको कर रहे, पर जीव पटक निकाय पर । करके दया रक्षा करो, करुणानिलय धीमानको, हे भव्यजन भज भावसे, मुनि मदनलाल महानको ॥ ४ ॥ तरुणकरुणधारी, शुद्धता पूर्वचारी जिनवचनविहारी, सर्व पापापहारी । निविड तिमिरहारी, ज्ञानदीपात्सदा तं, मृमुनि मदनलाल, शुद्धभालं भजध्वम् ॥ ५ ॥ हिन्दी-- जो शुद्धता पूर्वक विचरते, तरुणकरुणावरान थे, जो पापहारक सर्वदा, जिनवचनश्रद्धावान थे। अज्ञानहारक ज्ञानसे, उन दिव्य सन्त सुजानको, हे भव्यजन भज भावसे, मुनि मदनलाल महानको ॥ ५ ॥ सकलभुवनचिन्ता - हारि - चिन्तामणियः पुनरपि जनवा-छा, पूरणे कल्पवृक्षः । मुगतिसरणि नेता, सद्गुरु स्तत्त्ववित्तं,सुमुनि मदनलाल शुद्धभालं भन्नध्वम् ॥ ६॥ हिन्दी-- सबके मनोरथ पूर्ण करने, कल्पवृक्ष समानजो, , चिन्ता हरणमें थे पुनः, चिन्तामणी परमान जो ।Page Navigation
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