Book Title: Smarankala
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 255
________________ पूजा, जाप, ध्यान और लय प्रीति प्रादि चार अनुष्ठानों की उत्तरोत्तर अधिक फल-दायिनी शक्ति पूजा कोटि सम स्तोत्र, स्तोत्रकोटि समो जप । जपकोटि सम ध्यान, ध्यानकोटि समो लयः ॥ अर्थ :-परमात्मा की एक करोड बार की गई द्रव्य-पूजा जितना फल एक स्तोत्र-पूजा मे है। कोटि स्तोत्र-पूजा के समान फल परमात्मा के पवित्र नाम के जाप का है । करोड जाप जितना फल परमात्मा के ध्यान का है और करोड ध्यान जितना फल लय मे है। इस श्लोक से हमे सरलता से स्पष्ट हो जाता है कि द्रव्य की अपेक्षा भाव का मूल्य कितना अधिक है; परन्तु भाव उत्पन्न करने के लिये और उसमे वृद्धि करने के लिये द्रव्य की भी उतनी ही आवश्यकता है । इस कारण ही सर्वप्रथम परमात्मा की द्रव्य-पूजा करने का शास्त्रो ने निर्देश दिया है। तत्पश्चात् स्तोत्र, स्तुति, स्तवनादि द्वारा परमात्मा की भाव-पूजा करने का निर्देश दिया गया है। फिर जाप, तत्पश्चात् ध्यान और अन्त मे लय मे प्रवेश होता है इस बात का भी निर्देश दिया गया है। 'श्री जिन-प्रतिमा की द्रव्य-पूजा करने से त्रिभुवन द्वारा पूज्य परमात्मा की पूजा करने वाला मैं अब तुच्छ स्वार्थ की पूजा नही करूँगा'—यह भाव मन को स्पर्श करता है। इस भाव के स्पर्श से मन प्रफुल्लित होता है और स्वतः मिले मन भीतर भगवान् ८५

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