Book Title: Sitaram Chaupai
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

View full book text
Previous | Next

Page 409
________________ ( २५३ ) तसु पांसइ भ्रमसाभली, तसु आयोमनि वयराग । संयममारग आदस्यो, तपरि कीधो तनु त्याग वे ॥ ३४॥ पांचमइ देवलोक ऊपनो, ते इन्द्रपण आणंद ।। दससागरनइं आयुषई, आगइ अपछरना वृन्द वे ॥३५॥ तिण अवसरि ते गुणवती, कन्याना वयर विशेषि । वसुदत्त श्रीकंत वे जणा, हरिणादिभवे देखु देखि वे ॥ ३६॥ . भवमाहे भमता थका, किणही ते पुण्य प्रभावि। नगर मृणालतणो धणी, वनजंवू सरल सभाव वे ॥ ३७॥ हेमवती तसु भारिजा, हिवतेहनी कुखि तेह । श्रीकंतनो जीव अवतस्यो, अमिधान सयंभू जेह वे ॥ ३८॥ प्रोहित एक तिहाँ वसई, शिवसमे दयाल सदोव । श्रीभूत नामइ' सुत थयो, ते वसुदत्त तणो ते जीव वे ॥ ३६ ।। जिनधरमी श्रीभूत ते, तिणरइ घरि सरसति नारि । गुणवती कन्या जे हुती, ते लहि मृगली अवतार वे॥४०॥ भूरि संसार माहे भमी, वलि आची नरभव तेह। तिहाँथी मरिथई हाथिणी, खूती तसु कादम देह वे ॥४१॥ चारण श्रवण मुनीसरई, मरती दीधो नउकार। श्रीभूतिनी पुत्री थई, नउकारनी महिमा सार वे ॥ ४२ ।। मां बाप दीधो तदा, वेगवती अभियान । एक दिवन तिहां आवियो, अतिमलिन वस्त्र परिधान वे ॥४३॥ हीला करती साधनी, बापइ वारी ततकाल । पूजनीक एक साधछ', ए जीवदया प्रतिपाल वे ॥४४॥ १-सुत थयो तेहनो।

Loading...

Page Navigation
1 ... 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445