Book Title: Sitaram Chaupai
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 413
________________ ( २५७ ) ढाल ५ ॥ राग गउडी जाति जकडीनी । "श्री नउकार मनि ध्याईयइ ॥ एगीतनी ढाल ।। एक दिन इन्द्र कहइ इसउ, देवता आगइ किवारो। मोहिनी जीपतां दोहिली, सहु करमा सिरदारो जी ।। सिरदार सगला करम माहे, मोहिनी वसि जे पड्या। ते जाणता पिण धर्म न करइ, नेह बंधण मइ अड्या ।। संसार एह असार जीवित, चपल जल विदु जिसो। संपदा संध्याराग सरिखी, एक दिन इन्द्र कहइ इसउ ।।१।। मरणो तो पगमई वहई, कारिमी काया एहो जी। विपयारस लुबधा थका, पोपइ करिमी देहो जी ॥२॥ कारंमी देह समारि सखरी, नरनारी राता रहइ । पणि धन्य ते जे छोडि माया, सुद्ध संयम नइ ग्रहइ ।। वलि विषय सुख थी जेह विरम्या, धन्य धन्य सको कहई। चक्रवर्ति सनतकुमारनी परि, मरणो तो पगमई वहई ॥२०॥ इन्द्र वचन इम साभली, इ द्राणी कहइ एमोजी। वारवार कहउ तुम्हे, दोहिलो छोडतां प्रेमोजी ।। छोडता दोहिलो प्रेम प्रीतम इन्द्र कहर साभलि प्रिया । नगरी अयोध्या माहि लखमण राम बाधव निरिखीया ॥ ए प्रेम लपटाणा रहइ जीवइ नही (जिम) जल माछली। ते विरह छोडई प्राण अपणा इन्द्र वचन इम सांभली ॥३॥

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