Book Title: Sindur Prakar Author(s): Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 3
________________ प्रस्तावना. हृदयमा प्रवेश थवानी साथे तेवी रीतनी प्रवृति श्र. वस्य निःसंदेह थव शके एम कही शकाय तेम . जेथी वीतराग परमात्मानी नक्तिमां लीन थइ श्रा असार संसारसमज तरी पार पडवाने समर्थ थवाय बे अने तेथी या ग्रंथ एक नौका समान . श्रा ग्रंथनो जेम जेम विशेष जैन ना लाजले तेवी मारी जीज्ञासा होवाथी फक्त था एकलोज ग्रंथ जूदो प्रसिद्ध कर्यो . आ ग्रंथ उपाववामां दृष्टी दोषथी अगर मतिमंदताने लीधे कांपण न्यूनाधिक वचन सिझांत विरुफ लखायुं होय ते मीथ्या पुष्कृत हो, अने तेवी कोइ नूल होय तो ते वांचनार श्रीसंघे सुधारी वांचवा कृपा करवी. उपाया पड़ी श्रमारा जोवामां जे कोश् नूलो श्रावी ते संबंधी शुद्धिपत्र श्रा ग्रंथने बेडे दाखल कर्यु ते मुजब प्रथम सुधारी लश वांचवा प्रयत्न करशो एवी श्राशा . मुंब. ता. १० मी मे.) लां. श्रावक, शने १०२ नीमसिंह माणेकना J कार्य प्रवर्तको.Page Navigation
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