Book Title: Sikandar aur Kalyan Muni
Author(s): Dharmchand Shastri
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 2
________________ Vikrant Patni JHALRAPATAN सिकन्दर और कल्याण मुनि : सम्पादक जैनागम के अनुसार श्रावक अपनी यथा शक्ति के अनुसार आचरण करते हैं। तथा दिगम्बर जैन साधु उस आत्म शुद्धि की प्रक्रिया में आध्यात्मिक श्रद्धा और ज्ञान के साथ महान तपश्चरण करते हैं जैन साधु समस्त वस्त्र अपने शरीर से उतार कर प्राकृतिक जीवन में आत्म साधना करते हैं उस कठोर साधना और उच्च त्यागमयी चर्या से सारा संसार प्रभावित होता है। ____ महान विजेता सम्राट सिकन्दर ने पश्चिम दिशा से जब भारत पर आक्रमण किया तब वह दिगम्बर जैन साधुओं की नग्नचर्या देख कर बहुत प्रभावित हुआ। उसने अपने देश में धर्मप्रचार के लिए जैन साधुओं को ले जाना उपयुक्त समझा। तदनुसार तक्षशिला से अपने देश को लौटते समय अपने साथ कल्याण नामक दिगम्बर मुनि को विनय एवं सम्मान के साथ यूनान की ओर मुनि श्री का विहार कराया। यूनान को जाते हुए मार्ग में बाबिलन स्थान पर जून ३२३ ई. पूर्व दिन के तीसरे पहर ३२ वर्ष आठ मास की आयु में महान विजेता मृत्यु की गोद में सो गया। अन्तिम समय में कल्याण मुनि का उपदेश सुनकर संसार की असारता का भान हुआ। सिकन्दर ने अपनी इच्छा प्रगट की कि मेरे मरने के पश्चात् संसार को शिक्षा देने को हाथ अर्थी से बाहर रखे जावें, मेरी शवयात्रा के साथ अनेक देशों से लूटी हुई विशाल सम्पत्ति श्मशान भूमि तक ले जाई जावे जिससे जनता अनुभव कर सके कि आत्मा के साथ कोई भी पदार्थ नहीं जाता। सिकन्दर ने अनेक देशों को जीत कर बहुत सी सम्पत्ति एकत्र की परन्तु मरते समय अपने साथ कुछ नहीं ले जा सका। परलोक जाते समय दोनों हाथ खाली थे। कल्याण मुनि ने यूनान में सर्वत्र विहार किया तथा अहिंसा, अपरिग्रह का उपदेश दिया। एथेन्स नगर में शान्तिमयी समाधि के साथ प्राण त्याग किए। ब्र. धर्मचंद शास्त्री प्रकाशक :- आचार्य धर्मश्रुत ग्रन्थमाला गोधा सदन अलसीसर हाऊस संसार चंद रोड जयपुर सम्पादक :- धर्मचंद शास्त्री ज्योतिषाचार्य प्रतिष्ठाचार्य लेखक :- श्री मिश्रीलाल एडवोकेट गुना चित्रकार :- बनेसिंह प्रकाशनवर्ष १९८८ वर्ष 2 अंक 13 मूल्य : १०.००

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