Book Title: Siddhachakra Aradhan Keshariyaji Mahatirth
Author(s): Jitratnasagar, Chandraratnasagar
Publisher: Ratnasagar Prakashan Nidhi

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Page 55
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org लेटा हुआ है । उसी क्षण विक्रमादित्य राजा का सत्तावाही स्वर गूंज उठा "कोड़े मारना बन्द करो विप्रवरों....." Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैसे ही कोड़े मारना बन्द हुवे कि रानियों को मार पड़ना बन्द हो गई । विक्रमादित्य ने अवधूत सिद्धसेन दिवाकर से कहा "हें अवधूत। तुम शिवलिंग की ओर पैर करके महादेव की आशातना क्यों कर रहे हो....?" "राजन् मैं आशातना नहीं आराधना कर रहा हूं | मैं महादेव की - स्तुति कर रहा हूँ । सिद्धसेन दिवाकर सूरि ने कहा "तुम उच्चार पूर्वक खड़े होकर स्तुति करो....." "राजन् ... ....। यह शिवलिंग मेरी स्तुति सहन नहीं कर सकेगा ।" "इसकी चिन्ता तुम क्यों कर रहे हो। तुम स्तुति करो....." सिद्धसेन दिवाकरजी ने उसी क्षण संस्कृत में काव्यों की रचना करके कल्याण मन्दिर नामक स्तोत्र बोलना प्रारम्भ किया। पार्श्वनाथ प्रभु की स्तुति बोलने से शिवलिंग से धुंआ निकलने लगा । और थोड़ी ही देर में लिंग फट गया तथा पार्श्वप्रभु की प्रतिमा ऊपर निकल आई । श्यामवर्णी पद्मासन में ध्यानस्थ प्रतिमाजी के प्रगट होते ही जैन धर्म का विजय डंका बजने लगा | मालव सम्राट श्री विक्रमादित्य राजा मे भी सत्य समझकर जिनेश्वरदेव का धर्म स्वीकार किया । क्षिप्रा के किनारे पर भव्याती भव्य जिनालय बनाकर पुनः प्रभुजी प्रतिष्ठित किये गये। जो कि आज भी क्षिप्रा किनारे जिनालय में अवन्तिपार्श्वनाथ के नाम से पूजे जा रहे हैं। क्रूर काल की उथल पुथल देखते हुए यह जिनालय जीर्ण शीर्णं होते हुवे भी आज तक मात्र तीलघर में देहरी में प्रभुजी विराज रहे है। वास्तुकला या स्थापत्य की दृष्टि से जिनालय में आज कुछ भी दर्शनीय नहीं है । दर्शनीय है भगवान श्री अवन्तिपार्श्वनाथ प्रभु....। अवन्तिपार्श्वनाथ तीर्थ का परिसर विशाल है । यहां वर्तमान समय में विशाल धर्मशाला हैं भोजनशाला प्रतिदिन चालू रहती है। यात्रियों का यहां तांता सा लगा रहता है। दूर दूर से यात्रीगण यहां आकर भगवान श्री अवन्तिपार्श्वनाथ प्रभु के दर्शन वंदना से आत्मशान्ति पाते हैं । [44] For Private and Personal Use Only

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