Book Title: Siddhachakra Aradhan Keshariyaji Mahatirth
Author(s): Jitratnasagar, Chandraratnasagar
Publisher: Ratnasagar Prakashan Nidhi
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श्री माणोभद्रवीर का स्थान भैरवगढ़ में क्षिप्रानदी के तट पर अजन लोगों का सिद्धनाथ के नाम से मन्दिर है । ऐसी प्राचीन किंवदन्ती है कि श्री माणीभद्र वीर का मस्तक यहीं पर है।
श्री आदिश्वरजी का मन्दिर । (श्री भद्रबाहस्वामीजी के चरणब सिद्धाचल जी के पद युक्त)
श्री अवन्तीपार्श्वनाथ मन्दिरजी से लगभग १ कि. मी. दूरी पर श्री आदेशवर प्रभुजी का नूतन मन्दिर है । पूर्व में यहां श्री सिद्धाचलजी का पट्ट था। एक छोटी सी डेहरी बनी थो । मन्दिरजी का परिसर विशाल है । सेवा-पूजा करने की सुन्दर व्यवस्था है। श्री आदिश्वरजी के गर्भगृह की बाईं ओर श्री सिद्धाचलजी का पट्ट स्थित है । दाहिनी तरफ चउदह पूर्व- श्री आदिनाथ भगवान, हनुमन्त बाग धर युग प्रधान श्री भद्र बाहु स्वामी जी की चरण पादुका है। यहाँ प्रति वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन उज्जैन शहर के समस्त जैन श्रावक श्राविकाएँ यहाँ के पट मन्दिर पर एकत्रित होकर सिद्धाचलजी की यात्रा करने की भावना पूर्ण करते हैं। इस दिन नवाणु प्रकार की पूजा के बाद सभी को लड़ व सेव का भाता वितरण किया जाता है। ___ श्री आदेश्वरजो के मन्दिर के पीछे रायण का वृक्ष है जिसके नीचे आदि नाथजी की चरण पादुका विराजमान है। श्री शीतल नाथजी का मन्दिर
(कांच का मन्दिर) - श्री ऋषभदेव जी के मन्दिर से एक दो फांग की दूरी पर दौलतगंज मोहल्ले में श्री शीतलनाथजी का भव्य मन्दिर है। यह नतन मन्दिर काँच के आकर्षक काम से युक्त है । सैकडों व्यक्ति दर्शन करने आते हैं । यहाँ सेवा-पूजा को ‘उत्तम व्यवस्था है । यहाँ रात्रि को जैन पाठशाला लगती है।
कांच मन्दिर श्री शीतलनाथजी
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