Book Title: Shukl Jain Mahabharat 02
Author(s): Shuklchand Maharaj
Publisher: Kashiram Smruti Granthmala Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ प्रस्तुत ग्रन्थ लेखक के विषय में सार पंजाब प्रान्न मन्त्री पं० रत्न कवि सम्राट परम श्रद्धेय पूज्य श्री शुक्ल चन्द्र जी महाराज के सुशिष्य सन्तोष मुनि 'दिनकर" प्रभाकर।" .. . साधु जीवन कठोर साधना तथा दुर्गम निष्ठुर पथ पर चलना और नाना प्रकार के परिपहो का सहना है। आप इस आधुनिक युग मे जैन धर्म के एक उज्ज्वल चमकते हुए दिवाकर तथा श्री वर्द्धमान- . स्थानक वासी जैन श्रमण सघ के मन्त्री हैं । दिनकर से तेजस्वी राकेश से प्रोजस्वी दिव्य ज्योति अमर विभूति विश्व प्रिय आप ने शांत काति को जन्म देकर जो सत्यादर्श सघ समक्ष रखे ,उसका अखिल भारतीय श्रमण एवं श्रावक संघ.अभिनन्दन करते हैं..। आप एक सस्कृति के प्रकाशक है । शात और निर्भीक जीवन में प्रेम और सामंज्यस का जो विलक्षण समन्वय हुअा है उसी के नाते आप आज तक जैन समाज के लोक प्रिय लोक पूज्य और लोकवंघ बन रहे है । हमारी समाज मे आप एक अमूल्य चितामणि रत्न है । ज्ञान के भडार और शान्ति के सिन्धु हैं। शुक्ल जैन रामायण तथा शुक्ल जैन महाभारत जैसे महान् प्रन्यो के रचयिता से ही आपकी प्रतिभा का परिचय हो जाता है । आप एक प्रतिभा सम्पन्न और प्रभाव शाली सजग साधु तथा साधुत्व को एक साक्षात् मूर्ति है। जैनागमो का प्रापने गहरा अध्ययन किया मोर विपुल हिन्दी साहित्य का भी।

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 621