Book Title: Shukl Jain Mahabharat 02
Author(s): Shuklchand Maharaj
Publisher: Kashiram Smruti Granthmala Delhi

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Page 13
________________ 1 शुक्ल जैन महाभारत * प्रथम परिच्छेद ARY STARL पाण्डु की विरक्ति RRRRKS iii पूर्व कर्म के हाथ में है जीवन की डोर शुभ होवे तो मिल जायेगा जग उलझन का छोर घोर तिमिर भी छूट जाता है, होती है जब भोर भटक भटक कर सरिता, पहुंचे सागर के ही चोर WE श्वेत छत्र से सुशोभित पाण्डु नृप को वन क्रीड़ा करने की इच्छा हुई । चचल श्रश्व, मदोन्मत हाथी और सुन्दर, सुसज्जित रथ तैयार हो गए, चारो प्रकार की सेना सज गई । सौम्य सुन्दरी कमल मुखी माद्री भी पति आज्ञा से सोलह शृङ्गार करके तैयार हो i गई । नृप महल से निकले तो अनेक प्रकार के बाजे बज उठे । माद्री पालकी मे सवार हो गई । प्रश्व चचल हो गए । श्रीर नृप अपनी 7 सेना के साथ वन की ओर चल पडे । बन मे पहुच कर सेना को एक स्थान पर रोक कर नृप और माद्रो सघन वन में चले गए, वहां जहा प्रकृति सोलह शृङ्गार कर के मदनोत्मत्त थी । नृप कभी ताल वृक्षो की शोभा देखता, कभी सरल सरस वृक्षो पर दृष्टि जमा देता, और कभी मजरियो की सुगंध से परिपूर्ण, सुगन्धित ग्राम्र वृक्ष उमे अपनी ओर आकर्षित कर लेते। प्रशोक वृक्ष, जो कामितियों के पैरो की ताड़ना से हरे भरे हो जाते हैं, नृप को अपने यौवनोन्मादी शरीर को एक टक देखने के लिए आमन्त्रित करने तो प्रमदाओं के

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