Book Title: Shrimadvirayanam
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 8
________________ सुर धनु सम जानी संसार । त्यागे अहि कंचुकि अनुहारः ।। चढते भावें संजमभा लेने की मन माहि बिचारे । दऊँ० ॥१॥ त्यागी जगका माया मोहाालेवेचारित धरैन छोह ॥ राखै जरा न गुरु से द्रोह । जैसो लेते सोही पारे ।। दे || गुरु की सेवा करे इमेश ।। बिचरै देश प्रदेश विपश॥ देबे सत्त्य धर्म उपदेश आपन तिरे अवर को तारे ।। दें ॥३॥ राखे प्रति दिन बढ़ते भाव ।। पढ़ने गुनने का चितचाया। ऐसा लहिमानव भवदाव विषियन सुख माटे नहीं हारे ।।देशाशास्वपर समय तनों होय जान तपस्या करै शक्ति परिमाण ॥ पाले सूगुरु मगन मुनि आण माधव दोऊ ।

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