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पत्रांक
छुड़ाना
श्रीमद् राजवन्द्र पृष्ठ पत्रांक
पृष्ठ ७. नवपद-म्यानियोंकी वृद्धि
१७८ |१.५ काल और कर्मकी विचित्रता ७१ भगवतीका एक वाक्य
१७८१०६ दृष्टिकी स्वच्छता ७२ जिस तरह यह बंधन छूट सके उस तरह |१०७ उपाधि शमन करनेके लिये शीतल चन्दन
. 'योगवासिष्ठ' १९६ ७३ लक्ष देने योग्य नियम
१७९ जैनधर्मके आग्रहसे मोक्ष नहीं ७४ सर्व गुणांश सम्यक्त्व
१७९ |१०८ उदासीनता, वैराग्य और चित्तके स्वस्थ ७५ चार पुरुषार्थ
१७९ करनेवाली पुस्तकें पढ़नेका अनुरोध ७६ चार पुरुषार्थ १७९-८. १०९ भगवतीका वाक्य
१९७ ७७ चार आश्रम १८. ११. महावीरका मार्ग
१९७ ७८ चार आश्रम और चार पुरुषार्थ १८०-१ १११ मार्ग खुला है
१९८ ७९ प्रयोजन १८१ |११२ दो पर्दूषण
१९८ ८. महावीरके उपदेशका पात्र १८१-२ |११३ कलिकालकी विषमता
१९८ *८१ प्रकाश भुवन
१८२ सत्संगका अभाव
१९८ ८२ कुटुम्बरूपी काजलकी कोठडीसे
*११३ (३) अन्तिम समझ
१९८ संसारकी वृद्धि १८२ ११४ दो पर्युषण
१९९ ८३ जिनकथित पदार्थोकी यथार्थता १८२ | ११५ दोषोंकी क्षमा और आत्मशुद्धि २००-१ ८४ व्यवहारोपाधि १८२-३ | ११६ बम्बईकी उपाधि
२०१ ८५ लोकालोकरहस्य प्रकाश (कविता) १८३-४११७ छह महा प्रवचन
२.१-२ ८६ हितवचन
१८५-७ ११८ भगवतीके पाठसंबंधी चर्चा २०२-३ ८७ हितवचन
१८५-८ ११९ महात्मा शंकराचार्यजीका वाक्य
२०३
२.३
१२० ईश्वरपर विश्वास ८८ हितवचन
१८८ रातदिन परमार्थविषयका मनन
२०३ ८९ आज मने उछरंग (कविता) १८८
दुःखका कारण विषम आत्मा *९० होत आसवा परिसवा (कविता) १८८-९
ज्योतिष, सिद्धि आदिकी ओर अरुचि २.४ *९१ मारग साचा मिल गया (कविता) १८९
१२१ इस क्षेत्रमें इस कालमें इस देहधारीका जन्म २०४ ९२ इच्छा रहित कोई भी प्राणी नहीं १८९-९.
१२२ सम्यक्दशाके पाँच लक्षण
२०५ ९३ कार्योपाधिकी प्रबलता १९०-१ १२३ आत्मशांतिकी दुर्लभता
२०५ ९४ हे परिचयी-अपनी स्त्रीके प्रति १९१ | १२४ आत्मशांति ९५ अखाजीके विचारोंका मनन १९१ | १२५ आठ रुचक प्रदेश
२०६ ९६ कार्यक्रम
१९२
और अनंत निगोद २०६-७ ९. अपने अस्तित्वकी शंका १९२ | १२६ व्यास भगवानका वचन
२.८ १८ एक स्वप्न १९२ १२७ अभ्यास करने योग्य बातें
२०८ १९ कलिकाल १९२ / १२८ यथायोग्य पात्रतामै आवरण
२०९ १०० व्यवहारोपाधि
१९२ | १२९ 'तू ही तू' का अस्खलित प्रवाह २.९ व्यवहारकी स्पष्टता १९३ | १३० राग हितकारी नहीं
२०९ १.१लिंगदेहजन्यशान और भविष्यवाणी १९३ | १३१ परमार्थ मार्गकी दुर्लभता
२:९ उसमें उपाधिके कारण कुछ फेरफार १९४|१३२ आत्माको इष्टसिद्धिकी प्राप्ति
२१० पवित्रात्मा जूठाभाईको नमस्कार १९४ | १३३ मौतकी ओषधि
२१. १.१ भगवतीके पाठका खुलासा १९४-५ १३४ तीन प्रकारका वीर्य
२१.-१ १.१ जूठामाईके संबंध
१९५१३५ जिनवचनोंकी अनुतता २०४ अन्यथा बर्ताव करनेसे पचात्ताप १९५/१३५ (२) स्वभुवन
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