Book Title: Shrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Author(s): Shrimad Rajchandra,
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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श्रामद् राजचन्द्र
पृष्ठ
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५.१
४८८
५१२
पत्रांक
पृष्ठ पत्रांक ५८० शानी पुरुष
४८० | *६१८ संकोच-विकासकी भाजन आल्मा ४९९ ५८१ शूरवीरताका निरूपण
४८१ | ६१९ " जंगमनी जुक्ति तो सर्वे जाणिये" ४९९ *५८२ सर्वश है
४८१६२० सहजानन्दके वचनामृतमें स्वधर्म शब्दका अर्थ ५०० *५८३ सर्वशपद
४८१ ६२१ आत्मदशा *५८४ देव, गुरु, धर्म ४८१ | ६२२ प्रारब्धरूप दुस्तर प्रतिबंध
५०१ *५८५ प्रदेश, समय, परमाणु ४८२ | ६२३ आत्मदशा
५०१ ५८६ आत्मविचार ४८२ | ६२४ अस्तिकाय और कालद्रव्य
५०२-३ ५८७ क्या राग-द्वेष नाश होनेकी खबर पड़
*६२५ विश्व, जीव आदिका अनादिपना ५०३ सकती है ४८२-३ | *६२६ विश्व और जीवका लक्षण
५०३ ५८८ अंतर्परिणतिकी प्रधानता ४८४ | *६२७ “ कम्मदव्वेहिं समं"
५०४ ५८९ शानी-पुरुषोंकी समदशा
४८४ | ६२८ पंचास्तिकायका स्वरूप ५९० शानी और शुष्क ज्ञानीका भेद ४८५ / ६२९ दुर्लभ मनुष्य देह
५०५ केवलज्ञानकी परिभाषा
४८६-८ ६३. शरीरसंबंधी ५९१ त्याग-वैराग्यप्रधान ग्रंथोंका पठन
६३१ धर्मास्तिकाय आदिसंबंधी प्रश्न ५९२ " अन्य पुरुषकी दृष्टिमें" ४८८ ६३२ आत्मदृष्टिकी दुष्करता
५०७ ५९३ शानी पुरुषकी पहिचान
४८८-९ ६३३ ' अपुत्रस्य गतिर्नास्ति' ५०८-११ ५९४ मृत्यु के संबंध
४८९-९० ६३४ वैराग्य और उपशमकी मुख्यता ५९५ ब्रह्मचर्य परमसाधन ४९०-१ ६३५ ब्रह्मरन्ध्रसंबंधी ज्ञान
५१३ ५९६ जिनागममें दस बातोंका विच्छेद ४९१ ६३६ जैनधर्मके उद्धार करनेकी योग्यता ५१४-५ ५९७ शान, क्रिया, और भक्तियोग ४९१ ६३७ उन्नतिके साधन
५१६ ५९८ जिनागममें केवलज्ञानका अर्थ ४९२-३ | ६३८ सर्वव्यापक सच्चिदानन्द आत्मा
५१६ *५९९ हेतु अवक्तव्य !
६३९ आत्मार्थका लक्ष *६०० आत्मदशासंबंधी विचार ४९३ | ६४. दर्शनोंकी मीमांसा
५१८ *६.१ द्रव्यके संबंध ४९४ ६४१ जैनदर्शनसंबंधी विकल्प
५१९-२० *६०२ हे योग
४९४ | १२ शंकाओंका समाधान *६.३ चेतनकी नित्यता ४९४ ६४३ उपदेश-छाया
५२१-७६ *६०४ श्रीजिनकी सर्वोत्कृष्ट वीतरागता
४९४ केवलज्ञानीको स्व-उपयोग
५२१ *६०५ विभिन्न सम्प्रदायोंका मंथन ४९५ शुष्क शानियोका अभिमान
५२२ *६०६ धर्मास्तिकाय आदिके विषयमै ४९५-६ भक्ति सर्वोत्कृष्ट मार्ग है
५२३ *६०७ केवलज्ञानविषयक शंका
शान किसे कहते हैं
५२३ *६०८ जगत्की भूत, भविष्य और वर्तमानमें स्थिति४९६ कषाय क्या है
५२४ *६०९ जड़ और चेतन
४९६ समभाव किस तरह आता है
५२४ *६१० गुणातिशयता
इन्द्रियाँ किस तरह वश होती है ५२४ :६११ पाँच शान
बारह उपांगोंका सार
५२५ *६१२ केवलशान
ग्यारहवें गुणस्थानसे जीव पहिलेमें *(१३ बंध हेतु आदिके विषयों
४९७
किस तरह चला जाता है ५२५ *(१४ आत्मासंबंधी विचार
४९८ एक एक पाईकी चार चार आत्मायें ५२६ *६१५चेतन ४९९ चार लकबहारोंके दृष्टांत
५२६ *६१९ प्राप्यकारी-अप्राप्यकारी ४९९ शानीकी पहिचान किसे होती है
५२७ *६१७ संयम
इस कालमें एकावतारी जीव ५२८
४९९

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