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रानी चेलना का धर्म-संघर्ष
उपरान्त मैं भक्तिपूर्वक आपके मत को ग्रहण करूगी माप इस विषय में लेशमात्र भी सदेह न करे।"
रानी के मुख से इन शब्दो को सुनकर बौद्ध साधुप्रो को अत्यन्त सतोष हुआ और वह रानी से कहने लगे
"अच्छा रानी । अब हम जाते है और कल तेरे यहा भोजन के लिये आकर तुझे बौद्धमत ग्रहण करावेगे।" ____ यह कहकर वह अपने अन्य साथियो सहित रानी के महल मे चलकर राजा श्रेणिक के पास आये। उन्होने उनको राजमहल के सारे वार्तालाप का समाचार सुनाया । उसको सुनकर राजा भी बहुत प्रसन्न हुए। अब तो उनको भी पूर्ण विश्वास हो गया कि अब रानी निश्चय से बौद्ध बन जावेगी। वह बौद्ध साधुनो को विदा करके रानी की अनेक प्रकार से प्रशसा करते हुए रात को उसके पास
आये और उससे बोले___"प्रिये ! आज तुम धन्य हो जो तुमने गुरुप्रो का उपदेश सुनकर बौद्ध धर्म धारण करने की प्रतिज्ञा कर ली। शुभे । इस बात का ध्यान रहे कि बौद्धधर्म से बढकर मनुष्य का हितकारी ससार मे अन्य कोई धर्म नहीं है । कल तुम गुरुप्रो के लिये उत्तम भोजन तैयार कराना।"
यह कहकर राजा सो गये और रानी चेलना ने अगले दिन बौद्ध गुरुयो के लिये अनेक प्रकार के उत्तम भोजन तैयार कराये। लड्ड, खाजा आदि अनेक प्रकार के मिष्टान्नो के साथ-साथ छहो प्रकार के रसो के उत्तम पदार्थ तैयार कराये गये। राजा श्रेणिक ने गुरुप्रो के बिठलाने का प्रबंध करके बौद्ध गुरुओं को बुलाने के लिये अत्यन्त विनयपूर्वक निमत्रण भिजवाया।
राजमहल का निमत्रण पाकर बौद्ध साधु अपने पात्र, चीवर आदि ठीक करके राजमदिर की ओर चले। रानी चेलना ने उनको राजमदिर में प्रवेश करते देखकर उनका बहुत सम्मान किया। बौद्ध गुरुयो के अपने आसन पर बैठ जाने पर रानी ने उनके चरणो का प्रक्षालन किया। उसके पश्चात् उनके सामने सोने-चादी के थाल रखकर उनमे अनेक प्रकार के लड्डुमो, खीर, श्रीखण्ड,
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