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सिंहल-नरेश से युद्धं से निकलते हुए सीधे राजद्वार पर पहुंचे । आपने वहां जाकर द्वारपाल से कहा___ "तू भीतर जाकर राजा से मेरा सदेश कह कि मै दूत हू और मुझे राजा मृगाक ने भेजा है। मै राजा रत्नचूल से कुछ समझौते की बातचीत करना चाहता हूं।"
द्वारपाल उनका यह वचन सुनकर अन्दर गया और राजा की अनुमति लेकर जम्बूकुमार को अन्दर ले गया। जम्बूकुमार अपनी काति से अपने चारों ओर तेज फैलाते हुए निर्भय होकर राजा रत्नचूल के पास गये। वह उसको नमस्कार किये बिना ही उसके सामने जाकर खडे हो गये। उनको देखकर राजा रत्नचूल भी आश्चर्य करने लगा कि यह कैसा दूत है जो नमस्कार करना भी नही जानता और मुख से कुछ भी न बोलकर खम्भ के समान सामने खडा है। तब राजा रत्नचूल ने कुमार से पूछा
"आप किस देश से आये है ? मेरे पास आपका क्या काम है ?" इस पर कुमार ने उत्तर दिया
"मैं नीति-मार्ग का आश्रय लेकर आपको समझाने आया है कि आप केरल देश से अपना घेरा उठा लो और इस हठ को छोड दो। विलासक्ती का वाग्दान हो चुका है। वह दूसरे व्यक्ति को मन से स्वीकार कर चुकी है। अतएव आपको उसे प्राप्त करने का हठ नहीं करना चाहिये। इस दुराग्रह से आपको इस लोक तथा परलोक दोनो ही जगह दुःख प्राप्त होगा। इसमें प्रापको अपकीर्ति मिलेगी। जगत् मे स्थान-स्थान पर संहस्रो स्त्रियां हैं। आपको इसी कन्या को प्राप्त करने का हठ क्यो है, यह हमारी समझ में नहीं आया । यदि आपको अपनी सेना के बल का अभिमान है तो यह आपकी भूल है। संसार में कोई भी व्यक्ति सब से बड़ा बलवान् नही है । यहां एक से बढकर अनेक व्यक्ति बलवान् मिलेगे। जब राजा मृगाक अपनी कन्या को सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार को देने का वचन दे चुके है तो वह आपको कैसे दी जा सकती है ? उससे उनका अपयश होगा। इसलिये आपको विलासवती को प्राप्त करने का