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(A-PEER)
राजा दीपचन्द्र देवने भी विवाह महोत्सव में अपनी ओर से कोई कोर कसर बाकी न रखी। करमोचनावसर में हाथी घोड़े सोना चांदी मणि रत्न आदि सभी गृहस्थसम्बन्धी राज योग्य आवश्यकीय वस्तुएँ दहेज में प्रदान की । कुमारी की माता रानी चन्द्रवती ने श्रीधरणेन्द्र द्वारा मिले हुए दिव्य रत्नहार को और चन्द्रकला के भाई बामांग कुमार ने सिंहपुर से लाई हुई सारी सामग्री को बड़े आदर और स्नेह के साथ दहेज में दे दी । चतुरा कोविदा - प्रियंवदा आदि नामवाली बहत्तर दासियां मय वस्त्राभूषणों के दी गई ।
राजा दीपचन्द्र ने कहा कुमार ! इतने दिन कन्या पिहर में स्वेच्छा पूर्वक रही। कभी इसके मनको कोई बाधा नहीं पहूँचाई गई । अब आज से यह आपकी अर्धांगिनी बनी है। आप इसके हानि लाभ के कर्ताधर्ता हैं । हम आप जैसे योग्य जमाई को पाकर निश्चित होते हैं । इस प्रकार कुछ कह सुनकर एक दूसरे अपने कर्तव्य भार से मुक्त हुए ।
दूसरे दिन प्रातःकाल में कुमार श्रीचंद्र अपनी नवोढा पत्नी चन्द्रकला के साथ राजकीय चिह्नों को धारण करके हाथी पर सवार हो बडी सज धज से शहर के