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श्रदारिक शरीर की रचना के लिए प्रौदारिक वर्गरणा के पुद्गल ग्रहरण किए जाते हैं । वैक्रिय शरीर की रचना के लिए वैक्रिय वर्गरणा के पुद्गल ग्रहरण किए जाते हैं ।
पुद्गल का अर्थ है - पुद् = इकट्ठा होना और गल अर्थात् बिखर जाना ।
अपना शरीर प्रौदारिक वर्गरणा के पुद्गलों का बना हुआ है । अपने शरीर में से प्रतिसमय असंख्य, अनन्त पुद्गल बाहर निकलते हैं और अन्य असंख्य पुद्गल प्रवेश करते हैं ।
इस प्रकार यह शरीर परमाणुओंों का पुंज मात्र ही है । यह परमाणुपु 'ज कभी भी बिखर सकता है ।
यह शरीर अपने सम्पर्क में आने वाले वस्त्र, पात्र तथा भोजन आदि को भी अपवित्र करने वाला है ।
पूज्य उपाध्यायजी म. इस बीभत्स शरीर में भी एक आशा की किरण देख रहे हैं, वे कहते हैं कि इस प्रौदारिक शरीर में तो आत्मा को शाश्वत शिव-सुख प्रदान करने का सामर्थ्य भी है । आज तक जितनी भी अनन्त आत्माएँ मोक्ष में गई हैं, वे इसी देह को प्राप्त कर गई हैं, अतः हमें भी इस देह की प्राप्ति हुई है, जो हमारे लिए स्वर्ण अवसर समान है, अतः इस मानव-देह के द्वारा मुक्ति की साधना कर लेने की है और इसके लिए प्रतिदिन यह सोचना चाहिये कि 'इस देह के द्वारा श्राज मैंने कौनसा सुकृत किया है ? इस देह से मैंने कितना परोपकार किया है ?
पर हित में इस देह का कितना उपयोग किया है ?'
शान्त सुधारस विवेचन - २०१