Book Title: Shant Sudharas Part 01
Author(s): Ratnasenvijay
Publisher: Swadhyay Sangh

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Page 11
________________ संगृहीत किया गया है। ये चार भावनाएँ हैं-मैत्री, प्रमोद, करुणा और माध्यस्थ्य । इन सोलह भावनाओं के चिन्तन से प्रात्मा के राग-द्वेष मन्द होते हैं, आत्मा शान्तरस में निमग्न बनती है, विषय और कषाय की मन्दता होती है, आत्मा वैराग्यरस में मग्न बनती है। इन सोलह भावनाओं के चिन्तन को जितना विस्तृत करना चाहें, उतना कर सकते हैं। ग्रन्थकार महोपाध्यायश्री ने यह सम्पूर्ण ग्रन्थ काव्यात्मक रूप में बनाया है। इस काव्य में उन्होंने अपने चिन्तन के महासागर को उंडेल दिया है। एकान्त की पलों में जब इस काव्यग्रन्थ का मस्ती से तन्मयतापूर्वक स्वाध्याय किया जाय तो कुछ अलौकिक ही आनन्द आता है । इस ग्रन्थ के स्वाध्याय से अन्तःकरण में चिन्तन का झरना बहने लगता है। संस्कृत भाषा में विरचित इस काव्य-ग्रन्थ के हार्द को संस्कृतभाषा के ज्ञाता ही समझ सकते हैं । संस्कृत के इस महान् काव्य का रसास्वादन देश-विदेश की हिन्दीभाषी प्रजा भी कर सके, इसके लिए मेरे धर्मस्नेही मित्र विद्वान् मुनि श्री रत्नसेनविजयजी महाराज ने अथक प्रयत्न/पुरुषार्थ कर यह सुन्दर विवेचन तैयार किया है। लेखन/संपादन/संशोधन में प्रारंभ से रूचि रखने वाले पूज्य मुनिराजश्री ने अनेक अन्य पुस्तकों का सुन्दर आलेखन भी किया है। पूज्य मुनिश्री की मूल भाषा-शैली हिन्दी होने से वे हिन्दी भाषा के अच्छे प्रवचनकार भी हैं। 'मानवता तब महक उठेगी' 'मानवता के दीप जलाएँ', 'युवानो ! जागो' इत्यादि पुस्तकों

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