Book Title: Shant Sudharas
Author(s): Rajendramuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 198
________________ १७६ शान्तसुधारस दसांग सुख-सुख के दस प्रकार हैं-१. आरोग्य, २. दीर्घ आयुष्य, ३. धन की प्रचुरता, ४-५. काम और भोग की प्रचुरता, ६. अल्प इच्छा या संतोष, ७. अस्ति–आवश्यकता की पूर्ति होना, ८. शुभभोग–रमणीय विषयों का भोग, ९. प्रव्रज्या, १०. मोक्षसुख। दान्त-इन्द्रियों पर नियन्त्रण करने वाला। द्रव्य-जिसमें गुण और पर्याय दोनों होते हैं उसे द्रव्य कहते हैं। उनका अस्तित्व त्रैकालिक होता है, द्रव्य छह हैं १. धर्मास्तिकाय जीव और पुद्गल की गति में सहायक बनने वाला द्रव्य। २. अधर्मास्तिकाय-जीव और पुद्गल की स्थिति में सहायक होने वाला द्रव्य। ३. आकाशास्तिकाय-जीव और पुद्गल को अवकाश या आश्रय देने वाला द्रव्य। ४. काल-परिणमन का हेतुभूत द्रव्य, काल्पनिक द्रव्य। ५. पुद्गल-जो वर्ण, गंध, रस और स्पर्श से युक्त है और जिसमें मिलने और पृथक् होने का स्वभाव है। ६. जीव-चेतन द्रव्य। द्वादश रन्ध्र-दो कान, दो आंख, दो नथुने, एक मुंह, दो स्तन, मलद्वार, मूत्रद्वार और योनि द्वार-ये बारह रन्ध्र स्त्री के होते हैं। उनसे प्रतिपल अशुचि का क्षरण होता रहता है। धर्म-वह साधन जिससे आत्मा की शुद्धि होती है। धर्मध्यान-जितनी आत्माभिमुख एकाग्रता है वह धर्मध्यान है। वह मोक्ष का कारण है, अतः उपादेय है। उसके चार भेद हैं१. आज्ञाविचय–वीतराग की आज्ञा पर चिन्तन करना। २. अपायविचय–दोषों के स्वरूप का विमर्श करना। ३. विपाकविचय-कर्म के विपाकों का अनुचिन्तन करना। ४. लोकविचय-लोक के संस्थान आदि पर एकाग्र होना।

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