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(८१) १ वहेचणरुप व्यवहार,
२ प्रवृत्तिरूप व्यवहार. __ प्रति व्यवहारना त्रण भेद छे. वस्तुप्रवृत्ति, साधनप्रवृत्ति, लौकिकात्ति. तेमां साधन प्रवृत्तिना त्रण भेद छे.
१ जे अरिहंतनी आज्ञाये शुद्ध साधन मार्गे इह लोक संसार पुद्गल भोग आसंसादिदोष रहीत जे रत्नत्रयिनी परिणति, परभव त्याग सहित ते लोकोत्तर साधन प्रवृत्ति नामे पेहेलो भेद जाणवो.
२ स्याद्वाद विना मिथ्याभिनिवेष सहित साधन प्रवृत्ति ते दुःपावचनिक साधन प्रवृत्ति.
३ लोकना स्व स्वदेश कुलनी चाले प्रवृत्ति ते लोक व्यवहार प्रवृत्ति ए त्रण प्र
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