Book Title: Shaddravya Vichar Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 246
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२३१) ध्यात्व पण होय. यदुक्तम् चोदसदस्यअभिन्ने नियमासम्मं तु सेसए भयणा मतिओही वेवच्चासोवि होंति मिच्छे नउणसेसे ॥ अभिन्नदशपूर्वी अने अभिन्न चतुदेश पूर्वीने नियमा सम्यक्त्व कह्युं छे, पण कयुं सम्यक्त्व ते स्पष्ट जणान्युं नथी. अन्य ते थकी न्यूनपूर्वीओने भजना जाणवी . अभव्य दशपूर्व भिन्न द्रव्यश्रुतनो चारित्र अंगीकार करी अभ्यास करे छे, पण तेने सम्यक्त्वनी प्राप्ति थती नथी. बाह्यचारित्र क्रियाबळे अभव्यजीव नव ग्रैवेयक सुधी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only

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