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विशेष साधना-तष
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मनुष्य मनुष्य की तरफ आकर्षित हो, वह से, अधिकारियों से, श्रीमानों से प्रायः इसी तरह तादात्म्य अनुभव करे—प्रेम पैदा करे--इपके का भय होता है । इसे विनय-तप नहीं कह सकते। लिये विनय तप आवश्यक है।
प्रश्न--समाज सेवकों को अपने स्वार्थ के प्रश्न-शिष्टाचार के नाते हमें विनय करना लिये नहीं किन्तु समाज के स्वार्थ के लिये अधिही पड़ता है । राजाओं के सामने या अफसरों के कारियों से या श्रीमानों से डरना पड़ता है इस सामने सिर झुकाना ही पड़ता है—सभी ऐसा करते भय को आप सात्त्विक भय तो कह नहीं सकत हैं फिर विनय पर इतना ज़ोर क्यों दिया जाता क्योंकि इसमें गुणानुराग या पाप-विरक्ति नहीं है है ? उसे तप तक क्यों कहा जाता है ? इसलिये यह राजस-भय ही कहलाया । परन्तु
उत्तर--जहां विवश होकर सिर झुकाना समाज सेवक के लिये तो यह भय और इस भय पडता है वहां विनय नहीं है। विनय में प्रेम से पैदा होने वाला शिष्टाचार एक तपस्या ही है। होता है और भय नहीं होता या प्रेमजन्य सात्त्विक पर आपकी दृष्टि में तो राजस-भय होने से इसे भय होता है, राजाओं या शासकों के सामने तपस्या नहीं कह सकेंगे। झुकने में प्रेम नहीं होता भय होता है और वह उत्तर--समाज-सेवकों का यह महान तप भय राजस या तामस होता है प्रेमजन्य नहीं होता। है पर उसका नाम विनय तप नहीं है। वह तप है
भय के भेद-गुणानुराग प्रेम, भक्ति आदि त्याग, वह तप है सहिष्णुता ।वे समाज के कल्याण से जो भय होता है वह मात्विक भय है, पाप ।
के लिये स्वेच्छा से अविनय सहन करते है यह और पापियों के संसर्ग से और घृणित वस्तुओं से
उनका सहिष्णुता तप है और अपने सन्मान का दूर रहने में जो भय है वह भी सात्विक भय
त्याग करते हैं यह उनका त्याग तप है । इस है। पण्य से प्रेम और पाप से घृणा व एक हा
प्रकार उस अवसर पर विनय तप न होने पर भी
त्याग और सहिष्णुता के द्वारा महान तपस्वी है। मनोवृत्ति के रूप हैं और दोनों ही कल्याणकारी हैं इसलिये दोनों को साविक भय कहना चाहिये।
अज्ञानता अन्ध-विश्वास आदि से जो भय ईश्वर का भय, गुरु का भय, साधु का भय, उपकारी
पैदा होता है वह तामस-भय है। भत पिशाचों का भय ये सब सात्विक भय हैं । परन्त इसमें का भय इसी तरह का भय है । और भी प्रमाणजिन वस्तुओं से भय है उनके प्रति अनराग है हीन कल्पनाओं के द्वारा जो हम भय के साधन इसलिये इन्हें श्लेषमय-सात्विक-भय कहना बना ल
बना लेते है वे सब तामस भय हैं । आत्मशक्ति चाहिये । व्यभिचार का भय, चोरी का भय. का ज्ञान न होने से अपने से निर्बलों का भी दुर्जन का भय आदि भय सात्त्विक हैं पर इसमें भय तामस भय है । इस भय से प्रेरित हो कर जिन से भय है उनसे अनुराग नहीं होता इस जो विनय प्रगट किया जाता है वह भी विनय लिये इन्हें विश्लेषमय-साविक-भय कहना तप नहीं है। चाहिये ।
कभी कभी एक ही व्यक्ति के विषय में दो . जो भय निर्बलता या स्वार्थ-भ्रंश की संभा- या तीन। भय एकत्रित हो जाते हैं । उसके गुणा. वना से होता है वह राजस भय है। राजाओं नुराग उपकार आदि के कारण सात्विक भय