Book Title: Satyamrut Achar Kand
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 204
________________ कल्याणपथ [११० व्यवस्था के अनुसार करना उचित है । यह देखना यह च हिये कि अमत्य का प्रचार विनिमय दुकानदार या ग्राहक सरीवा नहीं है तो नहीं हो रहा है, घमंडकी पूज! तो नहीं हो इसलिये इसे लेन-देन या व्यापार नहीं कह सकते। रही है, प्रचार की ओट में स्वार्थियाने अपनी एक प्रकार का यह दान ही है इसलिये निन स्वार्थपूर्ति के अढे तो नहीं बना लिये हैं आदि : लोगों को यह दिया जाता है उनकी पात्रता का -धर्मस्थान बनवाना। भी एक विभाग चाहिये । इसलिय उन्हें व्यवहार- यह देखना कि धर्मस्थान में कोई अमाधारपात्र कहा है। णता है कि नहीं, कोरे नामके लिये या अपने दान करते समय पात्र को ही दान दनेकी पक्ष-पोषण के लिये तो यह धर्मस्थान नहीं कोशिश करना चाहिये और अनेक पात्रों में विस बनाया जाता है ? उस जगह उसकी जरूरत समय किस पात्र को दान देना है इसका भी विवेक है कि नहीं आदि । रखना चाहिये। ५-धर्मशालाएँ बनवाना ख-उपयोग-हम जो धन देते हैं वह किस यह देखना कि धर्मशालार गुंडों के अड्डे काम के लिये देते हैं और उस काम में वह तो नहीं बन रही हैं यात्रियों के लिये सुविधा है आसकेगा कि नहीं, इसका विचार भी करना कि नहीं ! आदि । चाहिये । कैसे कामों में दान देना चाहिये और ६-छात्रवृत्ति देना। उस में कैसी खबरदारी रखना चाहिये इम के कुछ देखना यह कि इस विद्यार्थी ऐयाश नमने यहां दिये जाते हैं जिससे लोगों को दान या अपव्ययी तो नहीं हो रहा है, उस वास्तव के उपयोग करने के विचार में सुभीता हो। में इसकी जरूरत है कि नहीं। छात्रवृत्ति के द्वारा १-भूखों को भोजन देना । जो वह अपने ऊपर नैतिक ऋण ले रहा है उसे ____ इस में यह देखना चाहिये कि भिखारीने चुकाने की भावना है कि नहीं ? आदि। भीख मांगना धंधा ही तो नहीं बना लिया है, वह ७ लोक सेवकों की पूजा करना। उनके आलसी हरामखोर तो नहीं हो गया है, भीख का जीवन निर्वाह का उनकी यात्राओं का उनके वह दुरुपयोग तो नहीं कर रहा है, आदि। द्वारा होने वाले प्रचार का प्रबन्ध करना । २-शिक्षा संस्थार खुलवाना । देवना यह चाहिये कि जनसेवक निःस्वार्थी देखना यह चाहिये कि संस्थाएँ जातीयता और ईमानदार है कि नहीं, उसकी सेवा आवया साम्प्रदायिकता का विष तो नहीं फैला रही हैं, श्यक है कि नहीं ? आदि । शिक्षण निरुपयोगी तो नहीं हो रहा है, चरित्र ८ औषधालय का प्रबन्ध करना । पर बुरा प्रभाव तो नहीं डाल रहा है, बेकारी तो देखना यह चाहिये चिकित्मक योग्य है कि नहीं बढ़ा रही है आदि । नहीं रोगियों से सद्व्यवहार किया जाता है, ३-प्रचार के लिये पुस्तक और पत्रादि चिकित्सक धर्म की आट में स्वार्थ के लिये रोगियों का प्रकाशन । का शिकार तो नहीं कर रहा है, आदि ।

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