Book Title: Sanskrit Vyakaran Me Karak Tattvanushilan
Author(s): Umashankar Sharma
Publisher: Chaukhamba Surbharti Prakashan

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Page 318
________________ २९८ संस्कृत - व्याकरण में कारक तत्त्वानुशीलन हैं। दोनों में से किसी की अनुपस्थिति रहने से संज्ञा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । 'तीर्थे उपवसति' तथा 'एकादशीमुपवसति' दोनों प्रकार के उदाहरणों की पृथक्पृथक् सिद्धि सूत्रमात्र से हो जाती है । पहले उदाहरण में काल गम्यमान है तो दूसरे में देश । शब्दकौस्तुभ में दीक्षित उक्त वार्तिक को स्वीकार करते हुए 'उपोष्य रजनीमेकाम्' की द्वितीया को उपपद - विभक्ति मानकर ' कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे' ( पा० २|३|५ ) से कालव्याप्ति के कारण निष्पन्न कहते हैं । पुनः वे इसीलिए 'एकादश्यां न भुञ्जीत ' इस उदाहरण में सप्तमी की सिद्धि अधिकरण के आधार पर करते हैं कि उपपद-विभक्ति कारक - विभक्ति अधिक प्रबल होती है । अब प्रश्न है कि यदि कारक - विभक्ति प्रबलतर ही है तो 'रजनीमेकाम्' में भी सप्तमी क्यों न हो ? उत्तर में विवक्षाशास्त्र दिखलाया जायगा । इससे कहीं अधिक सन्तोषप्रद भर्तृहरि की उक्त व्याख्या है । अतः 'एकादश्यां न भुञ्जीत' में 'उपान्व ० ' सूत्र अप्रसक्त होगा, क्योंकि उप + वस् का प्रयोग नहीं है । भुज्-धातु के आधाररूप काल को अधिकरण हुआ है । 'रजनीमेकाम्' में उपवास का आधार काल है, जो कर्म ही रहेगा । नव्यन्याय तथा अधिकरण : भवानन्द का विवेचन नव्यनैयायिकों में भवानन्द अधिकरण-कारक की विवेचना को नई दिशा देकर भी भर्तृहरि के लक्षण की परिक्रमा करते हैं । सर्वप्रथम उन्होंने अधिकरण के तीन तथाकथित भ्रामक लक्षणों का खण्डन किया है. ( क ) कुछ लोग अपने आधेय से होने वाले सम्बन्ध को अधिकरणत्व मानते हैं तथा यह सम्बन्ध संयोग या समवाय के रूप में रहता है । यह पक्ष गदाधर के द्वारा व्युत्पत्तिवाद में भी उठाया गया है । इस पक्ष में यह दोष है कि संयोगादि सम्बन्ध सम्बन्ध-विशेष होने के कारण दो वस्तुओं में स्थित रहेंगे तथा दोनों में जैसे एक-दूसरे का संयोग होता है वैसे ही दोनों एक-दूसरे के आधार होंगे। मान लिया कि कुण्ड और बदरीफल में संयोग सम्बन्ध है । जिस प्रकार कुण्ड में संयोग है, उसी प्रकार बदरीफल में भी संयोग है । यदि आधाराधेय - सम्बन्ध भी संयोगात्मक ही है तो जिस प्रकार बदरीफल का आधार कुण्ड है, उसी प्रकार कुण्ड का आधार भी ठीक उसी काल में बदरीफल है, क्योंकि दोनों में संयोग सम्बन्ध है । कुण्ड में बदरीफल, पात्र में घृत, पृथ्वी पर घट इत्यादि सभी संयोगात्मक उदाहरणों की यही गति होगी । वैयाकरण कह सकते हैं कि यह अनिष्ट प्रसङ्ग इसलिए उत्पन्न हुआ है कि दो मूर्त पदार्थों के संयोगरूप सम्बन्ध का उदाहरण देकर कोई क्रियापद नहीं रखा गया है । किन्तु भाषा की मर्यादा के अनुसार कोई वाक्य बिना क्रिया के नहीं होता । अतः १. कारकचक्र, पृ० ७५- ७७ । २. 'आधाराधेयभावश्च न संयोगादिरूपसम्बन्धात्मकः । कुण्डादिसंयोगिनो बदरादेरपि कुण्डाधारताप्रसङ्गात्' । - व्यु० वा०, पृ० २६८

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