Book Title: Samyaktva Parakram 04 05
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

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Page 15
________________ पैतीसवां बोल-५ हो जायेगी ? महान पुरुषो को भी पता नही होता कि कल क्या होने वाला है ? फिर भी ससार मे प्राणीमात्र को सासारिक कार्यो को हाय-हाय लगी रहती है । कहने का _आशय यह है ससार-सबधी लालमा बढती ही चली जाती है और जो बढती हो चलो जातो है, वह पूर्ण कैसे हो सकती है ? लालसा की पूति तो तभी सभव है, जब उसकी मर्यादा बाध ली जाये और उस मर्यादा के अनुसार आशा पूरी करने के लिए आयुष्य भी हो लालसा की वृद्धि करते रहने से वह पूरी नही हो सकती । प्रागा की पूर्ति तो लालसा का त्याग करने से ही होती है । आहार का त्याग करने वाला पाशा-लालसा का त्याग कर देता है । वस्तुत जो व्यक्ति आशा-लालसा का त्याग करने के लिए ही आहार का त्याग करता है, उसी व्यक्ति का आहार-त्याग उचित कहा जा सकता है । इस प्रकार आशा का त्याग करने के लिए, जो व्यक्ति आहार का त्याग करता है, उसे आहार-त्याग करने से किस फल की प्राप्ति होती है, इस विषय मे गौतम स्वामी ने भगवान से प्रश्न किया है । गौतम स्वामी के इस प्रश्न के उत्तर में भगवान ने कहा-आशालता का उच्छेद करने के लिए आहार का त्याग करने वाला सर्वप्रथम तो जीवनजीने की लालसा त्याग देता है । वह विचारता है कि शरीर और आत्मा भिन्न-भिन्न है। इस प्रकार भेदविज्ञान पैदा होने से वह आहारत्याग के साथ जीवित रहने की आशा का भी त्याग कर देता है । वह अनशनव्रत स्वीकार कर लेता है। अनशनवत दो प्रकार का है-इत्वरिक अनशन और

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