Book Title: Samyaktva Mul Bar Vratni Tip
Author(s): Udyotsagar Gani
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 157
________________ छादश अतिथिसं विनाग व्रत. १५१ श्रमने नथी उलखता ? अमे फलाणा शाहना बोकरा, फलाणा ना नत्रीजा, फलाणो अमारो नाइ थायजे, तमारी साथे पण श्र मारे संसारनो नातो. तमे अमने उलखता हशो के नहीं लिखता हो? पण अमे तो सर्व जाणीयें बैयें. एक अहारार्थ एटला संबंध प्रगट करे,ते वारे ते गृहस्थने संबंध संबंधी राग उपजे.तेणेकरी ते . खुशीश्री आहार आपे, ते आहार साधु लीये,ते आजीविकादोष, ५ पांचमो वणीमगदोष. ते जे आहारने अर्थ साधु दीन पj बोले के, आज संसारमा सर्व स्वार्थी, परमार्थी को नथी. तो अमारी खबर कोण ले? तमारा जेवो कोश धर्मरुचि, धर्मिष्ट, उपकारी अने उदारचित्तवान् होय, ते जाणे, बीजो कोण जा णे? अमे तो निराधार, निरालंबनवृत्तिवाला बैयें. अमारो को वालो सगो नथी. आ नगरमां तो एक तमारुंज घर धर्मात्माजे, जे आटली पण खर खबर तमे लीयो बो. तमे अमारी तजवीज राखवावालाबो. तमे तो साधुना मा बापडो तमेबो, तो अमारो आटलो पण निर्वाह थायजे. इत्यादि दीनतानां वचन निर्वाहने अर्थे कहे, त्यारे ते गृहस्थने कांश अनुकंपा अने कांश अनिमान तथा कांश राग उपजे, तेवारें आहार घणो आपे, ते साधु लीए, तो पांचमो वणीमगदोष लागे. ६ हो तिगंडादोष. ते आहारने अर्थे गृहस्थने घेर गये थ के गृहस्थनी नाडी जूए, रोगना आदान, निदान प्रमुख कहे,ौ षध, गोली, चूर्ण, काथ प्रमुख बतावे, रोगनुं मूल कारण कहे के फलाणी चीज खावाथी व्याधि उत्पन्न थयो; ते माटे जो गोली खातो आ, रसनी गोली ते खाऊ, नहीं तो चार पांच दि वस औषधिनो क्वाथ कूटावीने खूब तरेहथी उकालो करावी पीठ, एवं गृहस्थ सांजले, त्यारे खुशी थाय; अने मनमां जाणे जे ए साधु सर्वरीतें खबरदार जे. एने बीजुं कां आपशुं तो

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