Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 202
________________ सम्यग्दर्शन : भाग-6 ] www.vitragvani.com आनन्दमय स्वानुभूति प्रकाश अचिन्त्य आत्म देखा सम्यक् भाव से... अतिशय आनन्द उलसित शान्तरस धार जब, जीवन धन्य बना है आतम साधते, शीघ्र चले मुक्ति सन्मुखी प्रवाह जब ... शान्त.. शान्तरस उल्लसित गुण के धाम में... अनन्त गुण के रस में डूबे राम जब; समुद्र कैसा गहरा चैतन्यरस का, स्वयंभू से भी नहीं माप मपाये जब... अरिहन्त आये हैं अहो मुझ अन्तर में ... सिद्ध प्रभु भी विराजे साक्षात् जब.. साक्षी सभी साधक सन्त देत हैं, ऐसी अनुभूति 'है' इन्द्रियातीत जब । चैतन्य प्रभु पकड़ाये चेतनभाव से, कभी न होवे चेतन राग- आधीन जब ; दोनों की जहाँ जाति ही भिन्न वर्तती, गहरे उतरे तो वह भिन्न जनाये जब... मुमुक्षुता जहाँ जगी सच्ची आत्म की, परम घोलन ज्ञान ही रस घुंटाये जब.. ज्ञान.. ज्ञान बस! ज्ञान... ज्ञान मैं एक हूँ, अनन्तभावों ज्ञान मही घोलाय जब... Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai. [187

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