Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-1 निश्चयनय का पक्ष (राग) है और मैं बँधा हुआ हूँ' – ऐसे विचार का अवलम्बन व्यवहार का पक्ष (राग) है। यह नयपक्ष -बद्धि मिथ्यात्व है। इस विकल्परूप निश्चयनय का पक्ष जीव ने पहले अनन्त बार किया है, परन्तु स्वभाव का आश्रयरूप निश्चयनय कभी प्रगट नहीं हुआ।समयसार की ग्यारहवीं गाथा के भावार्थ में कहा है कि 'शुद्धनय का पक्ष
भी भी नहीं हुआ', यहाँ 'शद्धनय का पक्ष' कहा है और वही सम्यग्दर्शन है। वहाँ जिसे शुद्धनय का पक्ष कहा है, उसे यहाँ 'नयातिक्रान्त' कहा है और वह मुक्ति का कारण है। ग्यारहवीं गाथा में यह कहा है कि प्राणियों के भेदरूप व्यवहार का पक्ष तो अनादि से ही है', वहाँ जिसे भेदरूप व्यवहार का पक्ष कहा है, उसमें इस गाथा में कहे गये दोनों पक्षों का समावेश हो जाता है। निश्चयनय के विकल्प का पक्ष करना भी भेदरूप व्यवहार का ही पक्ष है, इसलिए वह भी मिथ्यात्व है।
जैसा शुद्धस्वभाव है, वैसे स्वभाव का आश्रय करना, वह सम्यग्दर्शन है, किन्तु 'शुद्धस्वभाव हूँ' – ऐसे विकल्प के साथ एकत्वबुद्धि करना, वह मिथ्यात्व है। आत्मा, रागस्वरूप है - ऐसा मानना, वह व्यवहार का पक्ष है - स्थूल मिथ्यात्व है और 'आत्मा शुद्धस्वरूप है' – ऐसे विकल्प में अटकना, सो विकल्पात्मक निश्चयनय का पक्ष है - राग का पक्ष है। श्री आचार्यदेव कहते हैं कि मैं शुद्ध हूँ' – ऐसे विकल्प के अवलम्बन से आत्मा का विचार किया तो उससे क्या? आत्मा का स्वभाव, वचन और विकल्पातीत है। आत्मा शुद्ध और परिपूर्ण स्वभावी है, वह स्वभाव निज से ही है, शास्त्राधार से या विकल्प के आधार से
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