Book Title: Sammetshikhar Jain Maha Tirth
Author(s): Jayprabhvijay
Publisher: Rajendra Pravachan Karyalay

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Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्री सम्मेतशिखरजी तीर्थ की महिमा शत्रुंजय से भी बढ़कर बतलाते हुए १८ .वीं शताब्दी के पं. विजयसागरजी ने गाया है: अधिक ए गिरि गिरूअड़ो, शत्रुंजय थी जाणिएजी । वीर जिनेश्वर इम मणे, इन्द्रादिक सुर पास। सम्मेतशिखर तीरथ सिरे वीस प्रभुजी हां वास || ■ कविवर दयारुचि कृत सम्मेतशिखर रास जिन परिकर बीजा केई, पाम्या शिवपुरी वास रे ॥ ७ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ■ श्री पद्यविजयजी कृत सम्मेतशिखर स्तवन ऐ वीशे जिन एणे गिरि, सिद्धा अणसण लेई रे । पद्मविजय कहे प्रणमिए, पास शामलन चेई रे || भगवान सीमंधर स्वामी ने श्री सम्मेतशिखर शाश्वत तीर्थ की महिमा बतलाकर वहाँ कनकावती नगरी में इसकी स्थापना महाविदेह क्षेत्र में करवाई जाने के शास्त्रों में उल्लेख है, यही इस तीर्थ की सर्वोत्कृष्टता का सबल प्रमाण है । भारतवर्ष की महा जैन नगरी अहमदाबाद में भी श्री सम्मेतशिखर तीर्थ की स्थापना कविवर श्री पद्मविजयजी महाराज के सुदुपदेश से की गई है। जिस मुहल्ले के मन्दिर में इस तीर्थराज की स्थापना है, वह सम्मेतशिखर पोल के नाम से प्रसिद्ध है। यह स्थापना तीर्थ भारतीय काष्ठ शिल्प की उत्तमोत्तम कृति है । सम्पूर्ण शिल्प एक बड़े काष्ठ में से खुदाई कर हूबहू पर्वत वन - श्रृंखला और उन पर बने मन्दिर तथा वनस्पति, पशु-पक्षी, यात्रीगण, नाले-घाटी, ढालु भूमि आदि चमत्कारपूर्ण लक्षित किए गए हैं। श्री सिद्धाचल तीर्थ पर भी श्री सम्मेतशिखर तीर्थ स्थापना का एक स्वतंत्र चैत्य बना हुआ है। प्रभु पगला रायण हेठे, पूजी परमानन्द । अष्टापद चौविस जिनेश्वर सम्मेत वीस जिणंद ॥ संवत् १८४९ के श्री पद्मविजयजी के सिद्धाचल पर स्थित मंदिरावली के परिचयात्मक स्तवन से: ३० For Private And Personal

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