Book Title: Sammetshikhar Jain Maha Tirth
Author(s): Jayprabhvijay
Publisher: Rajendra Pravachan Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 66
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पारसनाथ हिल्स एक वायर कर लिया गया और एक वायर कर डकार भी नहीं ली। फॉरेस्ट मेंसन को सुपुर्द भी कर दिया। हर कोई ख्वाब कसना चाहता है। पहले अधिकारयों से माथाफोड़ हुई-समझौते के आठ मुद्दे तय हुए हैं। बोले- भई! दस्तखत को मंत्रिमंडल ही करेगा। आप जाइए, हम एग्रीमेंट पत्र आपको भेज देंगे। मंत्रिमंडल के सामने बात जाए और वह फेरबदल न करे, यह कभी हो सकता है। चाहे मंत्रीजी को हस्ताक्षर करना न आए, हस्तक्षेप करना तो आता है। समझौता पत्र क्या, जैन समाज का समर्पण-पत्र तैयार कर दिया और भेज दिया पेढ़ी को। आखिर यह सब जैन समाज के साथ ज्यादती, अन्याय, अत्याचार, लूट-खसोट और जुल्म ही तो है। जिससे टक्कर लेकर आज उसे जीना है। पटना की जेलें खाली हैं, जो उसे इस अनैतिकता, अप्रजातांत्रिकता और अनुचितता को समाप्त करने के लिए उन्हें भी भरना होगी। श्री कृष्णवल्लभ सहाय, जिसने हमें असहाय करने का प्रयास किया है, उनके बंगले पर धरना देना होगा। दिल्ली का तख सुनता नहीं है तो उसको भी हिलाना होगा। सुल्तान सोया हुआ है तो चेतावनी देकर जगाना पड़ेगा। हम अराजकता नहीं फैलाएँगे। अपने अधिकार माँगेंगे। आज राष्ट्रीय संकट है, लेकिन हमें दग्ध कर आज उत्तेजित और आन्दोलित किया जा रहा है। आज हमें बे-आबरू और बेइज्जतदार बनाने का प्रयास चल रहा है, हमारी अपनी संपत्ति लूटी जा रही है। कानूनन हमारे भगवान की प्रतिष्ठाएँ रुक सकती हैं, हमारी सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं। उपाश्रयों और साधुओं पर हमले किए जाते हैं, अर्द्धदग्ध मुनि शरीर को जलती हुई चीता से खींचकर सड़कों पर घसीटा जाता है, जिनालयों में बम विस्फोट होते हैं। फलतः श्रावकों को शहीद होना पड़ता है, खुलेआम जैनों के नाश हेतु नारे लगते हैं; फिर भी कोई सुरक्षा और कोई व्यवस्था नहीं। टैक्स का भार सभी से ज्यादा, किन्तु सुविधाएँ सभी से कम। ___ आज, जैन समाज को जागना है। बहुत सोये, अब तो उठो। बहुत खोया, अब तो चलो। जागो और कर्तव्य पथ पर डट जाओ। सभी प्रान्तों से यही आवाज है- सभी दिशाओं की यही पुकार है, सभी ओर से यही चेतावनी है। संभलो For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 64 65 66 67 68 69 70 71