Book Title: Samavsaran Prakaran
Author(s): Gyansundar Muni
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 32
________________ तीर्थको नमस्कार. रखते हुए पूर्व सन्मुख सिंहासन पर विराजमान हो सबसे पहिले " नमो तित्थस्स" अर्थात् तीर्थको नमस्कार करके धर्मदेशना देते हैं ? अगर कोई सवाल करे कि तीर्थकर तीर्थ को नमस्कार क्यों करते हैं ? उत्तरमें ज्ञात हो कि (१) जिस तीर्थसे आप तीर्थकर हुए इस लिए कृतार्थ भाव प्रदर्शित करते हैं। (२) आप इस तीर्थमें स्थित रह कर वीसस्थानक की सेवाभक्ती आराधन करके तीर्थकर नामगौत्र कर्मोपार्जन किया इस लिये तीर्थ को नमस्कार करते है । (३) इस तीर्थके अंदर अनेक तीर्थकरादि उत्तम पुरुष हैं इस लिये प्रत्येक मोक्षगामी अर्थात् तीर्थफर तीर्थ को नमस्कार कर बाद अपनी देशना प्रारंभ करते हैं । (४) साधारण जनतामें विनय धर्म का प्रचार करनेके लिये इत्यादि कारणों से तीर्थकर भगवान तीर्थ को नमस्कार करते है । मुणि विमाणिणि समणि। स भवण जोईवणदेवीदेवतियं । कप्प सुर नर स्थितियं । ठितीगोई विदिसासु ॥ १५ ॥ भावार्थ--देशना सुननेवाली बारह परिषदा का वर्णन करते है, जो मुनि, वैमानिकदेवी, और साध्वी एवं तीन परिषदा अग्नि कोण में-भवनपति, ज्योतीषी व्यंतर इन की देवियों नैरूत्य कौण में-भवनपति, ज्योतीषी, व्यंतर ये तीनों देवता वायव्य कौण, वैमानिकदेव, मनुष्य, मनुष्यत्रीयो एवं तीन परिषदा ईशान कौण में । अतएवं बारह परिषदा चार विदिशामें स्थित रह कर धर्मदेशना सुनते हैं।

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