Book Title: Sahityadarpanam
Author(s): Sheshraj Sharma Negmi
Publisher: Krushnadas Academy

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Page 10
________________ १८ शौद्धोदनिके मत में - ( ९ ) : "काव्यं रसादिमद्वाक्यं श्रुतं सुखविशेषकृत् ।" अर्थात् रस आदिसे विशिष्ट, सुखविशेष उत्पन्न करनेवाला वाक्य "काव्य" सुना गया है । १९ प्रकृत आलङ्कारिक विश्वनाथ कविराजके मतमें भी" वाक्यं रसात्मकं काव्यम् ।" अर्थात् रस रूप आत्मा ( जीवनाधायक ) वाला वाक्य "काव्य" है । २०. अलङ्कारशेखर के कर्ता केशव मिश्र के मत में "रसाऽलङ्कारयुक्तं सुखविशेषसाधनं काव्यम || " अर्थात् रस और अलङ्कारसे युक्त सुखविशेष ( अनिर्वचनीय आनन्द ) का साधन काव्य है । २१ रसगङ्गाधर पण्डितराज जगन्नायके शब्दों में- " रमणीयाऽर्थप्रतिपादकः हः शब्दः काव्यम् ।" अर्थात् रमणीय अर्थका प्रतिपादक शब्द काव्य है । याद रखना चाहिए पण्डितराज शब्दको काव्य मानते हैं, मम्मट भट्ट शब्द और अर्थ दोनों को काव्य मानते हैं । म० म० गङ्गाधर शास्त्रीने शब्द मात्र काव्य होता तो शब्द मात्र में विद्यमान दोष, गुण, अलङ्कार और ध्वनिका निरूपण होता अयंगत दोष गुगादिकों का निरूपण नहीं होता अतः काव्यत्व उभयनिष्ठ है ऐसा लिखकर मम्मटभट्टके मतक समर्थन किया है । म० म० नागेशभट्टने भी "काव्यं पठितं श्रुतं काव्यं, बुद काव्यम्" इन प्रयोगों शब्द और अर्थ दोनों में काव्य पदका व्यवहार देखनेसे काव्य पदका प्रवृत्तिनिमित्त व्यासज्यवृत्ति है ऐसा लिखकर प्राचीन आचार्यके मतक समर्थन किया है । २२. एकावली में विद्याधर कहते हैं “शब्दाऽर्थवपुस्तावत् काव्यम्" अर्थात् काव्य, शब्द और अर्थ रूप शरीरवाला है । २३ प्रतापरुद्रीय में विद्यानाथने लिखा है "गुणाऽलङ्कारसहितौ शब्दाऽय दोषवर्जितौ । गद्यपद्योभयमयं कात्र्यं काव्यविदो विदुः !” अर्थात् गुण और अलङ्कार से सहित, दोषसे वर्जित शब्द और अर्थ, गद्य और प दोनोंको "काव्य" कहते हैं ।

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