Book Title: Saddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Bhadrankaroday Shikshan Trust
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सद्धर्मसंरक्षक और चारित्रवान भी है इत्यादि ।" सौभाग्यविजयजी ने आपको बुलाने के लिये एक आदमी को भेजा । गुरुजी के साथ मुनि वृद्धिचन्दजी भी पधारे । मुनि सौभाग्यविजयजी ने आपका बहुत सत्कार किया । परस्पर बातचीत करके परिचय पाने के बाद सौभाग्यविजयजी बहुत संतुष्ट हुए। श्रीसिद्धगिरि की यात्रा
कुछ दिनों बाद केशरीचन्द गटा ने सिद्धाचलजी का छ'री पालता संघ निकालकर तीर्थयात्रा के लिये जाना था । बूटेरायजी महाराज ने भी श्रीसिद्धाचलजी की यात्रा करने के लिये सेठ हेमाभाई से अपनी इच्छा प्रकट की। सेठने संघवी को अपने पास बुला लिया और उसके आने पर उससे दो पंजाबी साधुओं को संघ के साथ ले जाने के लिये कहा । संघवी का विचार लम्बे-लम्बे पडाव करके थोडे दिनों में पालीताना में पहुँचने का था, इसलिये मुनि श्रीबूटेरायजी की वृद्धावस्था देखकर संघवी ने आपसे विनती की कि आपश्री 'डोली' में बैठकर संघ के साथ चलने की कृपा करें । आपने इस विचार को अनावश्यक बतलाकर लम्बी मंजिल करके भी संघ के साथ पैदल चलकर ही यात्रा करने की रुचि बतलाई । संघ के साथ चलते हुए आठ दिनों में आप वि० सं० १९११ (ई० स० १८५४) चैत्र सुदी १३ (मारवाडी) को पालीताना पहुँच गये। दूसरे दिन पर्वत पर चढकर श्रीऋषभदेव दादा के दर्शन कर अपार हर्ष का अनुभव किया । उस समय स्थानकमार्गियों के दुर्भाग्य का विचार आने पर मनमें कुछ खिन्नता सी हुई। विचार आया कि ऐसा उत्तम तीर्थ अनेक तीर्थंकरों, गणधरों, मुनियों ने जिस भूमि को पावन किया है; जहां से अनन्त मुनिराज सिद्ध (निर्वाण) पद को
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) 1(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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