Book Title: Rogimrutyuvigyanam
Author(s): Mathuraprasad Dikshit
Publisher: Mathuraprasad Dikshit

View full book text
Previous | Next

Page 71
________________ रोगिमृत्युविज्ञाने कुष्ठी शोभी च यक्ष्माप्तो मधुमेही तथोदरी । बलमांसविहीनाः स्यु-र्दुश्चिकित्स्यतमा मताः ॥ २९ ॥ कुष्ठी कुष्ठ रोग वाला, शोथी - जिसके शरीर में सोजा हो, यक्ष्माप्त जो यक्ष्या रोगाक्रान्त हो, मधुमेही - मधुमेह मूत्र में अत्यधिक मधुभाग उत्पन्न हो, पिपीलिका पेशाब पर अधिक आती हो और उदरी उदररोगी, यदि ये बल मांस क्षीण हो जाय अर्थात् नितान्त निर्बल शक्ति रहित हो जाय और मांस विहीन दुर्बल हो जाय, तो सर्वथा दुश्चिकित्स्य कष्ट साध्य हैं ॥ २६ ॥ ६२ वातव्याधिरपस्मारी गुल्मी चापथ्य सेविनः । एते मांसबलोन्मुक्ता श्रचिकित्स्या भिषग्वरैः ॥ ३० ॥ वातव्याधि - वातव्याधि रोगाक्रान्त, गठिया देह में दर्द, देह में शोजिस हो जाना, इत्यादि कई प्रकार से वातव्याधि मानी जाती है, अविशेषात् किसी प्रकार की भी क्यों न हो, सभी वातव्याधि पद से मानी जायँगी, अपस्मारी - मिर्गी रोग वाला, गुल्मी - जिसके शरीर में अत्यधिक बड़ा फोड़ा हो, अथवा दुःखद अनेक पिडिका - फोड़े हों, और अपथ्य सेवी - परहेज नहीं करने वाला, इस प्रकार के रोगी बल मांस रहित अर्थात् निर्बल और दुर्बल नितान्त दुश्चिकित्स्य हैं, उत्तम वैद्य इनकी चिकित्सा न करे । अतः बल मांस रहित कदाचित् ही साध्य हो सकता है, क्योंकि कालान्तर में अरिष्ट जब उत्पन्न हो जाय - तो उस अरिष्ट को देखकर परित्याग कर दे ।। ३० ।। उपद्रवेण रहितान् विकारपरिवर्जितान् । पूर्वोक्तान्सकलानेतान् चिकित्सेत रसैभिषक् ॥ ३१ ॥ उपद्रवों से रहित अर्थात् किसी प्रकार के घातक उपद्रव उत्पन्न नहीं हुए हों और विकार से रहित - किसी के विकृत लक्षण उत्पन्न न हों इस प्रकार के पूर्वोक्त वातव्याधि अपस्मारी आदि रोगियों की वैद्य

Loading...

Page Navigation
1 ... 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106