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रवीन्द्र-कथा कुञ्ज
अपनी अन्धी आँखोंके अनन्त अन्धकारमें मैं अकेली खड़ी होकर ऊपरकी ओर मुंह करके पुकारने लगी-हे भगवान्, मेरे स्वामीकी रक्षा करो।
इसके कई दिनों बाद एक दिन जब मैं प्रातःकाल के समय पूजासेवा करके बाहर पा रही थी, तब बुझाने कहा-बहू, मैंने अपने जेठकी जिस लड़कीकी बात उस दिन कही थी, वह हेमांगिनी आज देशसे यहाँ आ गई है। हिमू, देखो यह तुम्हारी बहन है । इनको प्रणाम करो।
इसी बीचमें मेरे स्वामी भी हठात् वहाँ आ पहुँचे और मानो एक अपरिचित स्त्रीको देखकर लौट जाने लगे । बुअाने पूछा-अविनाश, कहाँ जा रहे हो ? स्वामीने पूछा-यह कौन है ? बुझाने कहा-यह वही मेरे जेठकी लड़की हेमांगिनी है । यह कब आई, इसे कौन लाया, यह किस लिए आई, आदि अनेक प्रकारके प्रश्न करके मेरे स्वामी बार बार अनावश्यक आश्चर्य प्रकट करने लगे।
मैंने मन ही मन कहा कि जो कुछ हो रहा है, वह सब तो मैं अच्छी तरह समझ ही रही हूँ। लेकिन उसके ऊपर अब यह छल कपट आरम्भ हो गया है-लुक्का-चोरी, बातें गढ़ना, झूठ बोलना आदि। यदि अपनी अशान्त प्रवृत्तिके लिए अधर्म करना चाहते हो, तो करो। पर मेरे लिए यह हीनता क्यों करते हो ? मुझे छलनेके लिए यह कपटपूर्ण आचरण क्यों करते हो? ____ मैं हेमांगिनीका हाथ पकड़कर उसे अपने सोनेके कमरेमें ले गई । उसके मुंह और शरीरपर हाथ फेरकर मैंने देखा कि उसका मुँह सुन्दर होगा और अवस्था भी चौदह पन्द्रह बरससे कम न होगी ।
बालिका सहसा जोरसे हँसती हुई बोली-हैं यह क्या कर रही हो ! क्या तुम मेरा भूत झाड़ रही हो ?