Book Title: Ratnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Author(s): Ratnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 57
________________ (५६) प्रजा: लोको मुनयः मुनी | आत्मनिन्दनम् पोतत्क्षणात्=तेज वखते तेषां तेमने तानी निंदाने तादृट्वातेवा नमः नमस्कार इदं आ अपि पण कर्महे अमे करिये । कर्मः करीपती सन्ति होय लिए पुन: वली के को संविना संवेगी बोधये बोधिबीजमाटे अपि-पण वयम्-अमे _येषां दर्शन वन्दन प्रणमन स्पर्श प्रशं. सादिना, मुच्यन्ते तपसा निशा श्व सिते पदे प्रजास्तदणात्; तादृदा अपि सन्ति केऽपि मुनयस्तेषां नमस्कुर्महे, संविग्ना वयमात्मनिन्दनमिदं कुर्मः पुनर्बोधये ॥ए। शब्दार्थः-जेम श्रजवालोश्रा पखवामीयामां अं. धाराथी रात्री मुक्त थाय ने तेम जेमना दर्शन, नमस्कार, प्रणाम, स्पर्श तथा प्रशंसादिवमे लोको तेज वखते अज्ञान अंधकारथो मुक्त थाय जे तेवा पण केटलाक मुनी ले तेमने अमे नमस्कार करीए

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